विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को कहा कि भारत-चीन संबंधों में 2020 के बाद की सीमा स्थिति के चलते जटिलताएं बढ़ी हैं। उन्होंने कहा कि अब इन संबंधों के दीर्घकालिक विकास पर अधिक विचार करने की आवश्यकता है। विदेश मंत्री ने मुंबई में एक व्याख्यान में पिछले दशकों में चीन के साथ भारत के संबंधों के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि पूर्व के नीति-निर्माताओं द्वारा की गई ‘गलत व्याख्याओं’ ने सहयोग और प्रतिस्पर्धा दोनों को बाधित किया। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले दशक में हालात में बदलाव आया है।
उन्होंने कहा कि आपसी विश्वास, सम्मान और संवेदनशीलता दोनों देशों के रिश्तों की नींव होनी चाहिए। भारत और चीन के बीच संबंध हमेशा से आसान नहीं रहे हैं, क्योंकि सीमा विवाद और विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक प्रणालियां इसे और मुश्किल बनाती हैं। उन्होंने कहा कि इसका एक बड़ा कारण यह है कि दोनों देश उन्नति कर रहे हैं।
जयशंकर ने कहा कि भारत को ‘चीन की बढ़ती क्षमताओं’ का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए, भारत की व्यापक राष्ट्रीय शक्ति का अधिक तेजी से विकास आवश्यक है। उन्होंने कहा कि यह केवल सीमाओं और समुद्री क्षेत्रों में सुधार करने की बात नहीं है, बल्कि संवेदनशील क्षेत्रों में निर्भरता को कम करने की भी बात है। उन्होंने भारत के दृष्टिकोण को तीन पहलुओं में बांटा- आपसी सम्मान, संवेदनशीलता और हित।
21 अक्तूबर को, भारत और चीन की सेनाओं ने डेमचोक और देपसांग क्षेत्रों से सैनिकों की वापसी पूरी कर ली।
जयशंकर ने यह भी कहा कि द्विपक्षीय संबंधों को समझने से हमें पता चलेगा कि ये दोनों देशों और वैश्विक व्यवस्था के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं।