सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के उस आदेश को दरकिनार कर दिया जिसमें क्रेडिट कार्ड पर ब्याज दर के रूप में 30 फीसदी की सीमा तय की गई थी। आयोग ने माना था कि क्रेडिट कार्ड धारकों से 36 फीसदी से 50 फीसदी प्रति वर्ष के बीच ब्याज वसूलना अत्यधिक ब्याज दर है। जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने एचएसबीसी और अन्य के नेतृत्व वाले बैंकों द्वारा की गई अपील पर कार्रवाई करते हुए एनसीडीआरसी के 2008 के फैसले को खारिज कर दिया। शीर्ष अदालत ने 2009 में उपभोक्ता आयोग के आदेश पर रोक लगा दी थी, क्योंकि बैंकों ने तर्क दिया था कि यदि आदेश को निलंबित नहीं किया गया तो इससे उनके साथ पक्षपात होगा।बैंकों ने यह भी दावा किया था कि एनसीडीआरसी के पास बैंक के कामकाज को विनियमित करने वाले ऐसे आदेश पारित करने का अधिकार नहीं है। अपने फैसले में एनसीडीआरसी ने माना था कि यह अनुचित व्यापार व्यवहार है क्योंकि बैंकों और क्रेडिट कार्ड धारकों की सौदेबाजी की स्थिति पर विचार करने पर क्रेडिट कार्ड की सुविधा को स्वीकार न करने के अलावा क्रेडिट कार्ड धारकों के पास कोई सौदेबाजी की क्षमता नहीं थी।गैर सरकारी संगठन आवाज फाउंडेशन की याचिका पर दिए अपने फैसले में आयोग ने माना था कि क्रेडिट कार्ड रखने के लिए बैंक द्वारा विभिन्न विपणन रणनीतियों के माध्यम से प्रलोभन दिया जाता है। इसलिए यदि किसी शर्त के तहत उपभोक्ता को अपने दायित्व को पूरा करने में विफल रहने पर मुआवजे के रूप में अनुपातहीन रूप से उच्च राशि का भुगतान करना पड़ता है तो यह अनुचित व्यापार व्यवहार होगा।