Thursday, November 21, 2024

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भारत की कीमत पर पाकिस्तान से संबंध मजबूत बना रहा बांग्लादेश

इसी साल अगस्त महीने में शेख हसीना की विदाई के बाद बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच बन रहे मजबूत द्विपक्षीय रिश्ते ने भारत की सिरदर्दी बढ़ा दी है। मोहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली वर्तमान कार्यवाहक सरकार का एक-एक फैसला जहां बांग्लादेश को पाकिस्तान के करीब ला रहा है, वहीं इस फैसले से बांग्लादेश और भारत की दूरी लगातार बढ़ती जा रही है। बुधवार को पाकिस्तानी मालवाहक पोत का कराची बंदरगाह से सीधे चटगांव बंदरगाह पहुंचने के बाद भारत सतर्क है। गौरतलब है कि बांग्लादेश के अस्तित्व में आने के बाद दोनों देशों के बीच पहली बार सीधा समुद्री संपर्क हुआ है।

विशेषज्ञों का मानना है कि शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद गठित अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस कठपुतली हैं। असली सरकार अतीत में पाकिस्तान को समर्थन देने की नीति अपनाने वाली बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी(बीएनपी) और सेना चला रही है। यही कारण है कि अपने गठन के बाद से ही यह सरकार लगातार पाकिस्तान और चीन से करीबी बढ़ा कर भारत विरोधी फैसले ले रही है। कूटनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि कार्यवाहक सरकार के इस नए एजेंडे से पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की बांग्लादेश में पैठ मजबूत होगी और इससे फिलहाल पूरी तरह से नियंत्रित पूर्वोत्तर के अलगाववादी संगठनों को नया खाद पानी मिलेगा।बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में यूनुस नाम मात्र के मुखिया हैं। नागरिक मुखौटा लगा कर यह सरकार मुल्ला-मिलिट्री शासन के अधीन है। सेना और कट्टरपंथी इस्लमावादियों के साथ सांठगांठ स्पष्ट है। कैप्टन और उससे ऊपर के रैंक के सैन्य अधिकारियों को मजिस्ट्रियल शक्तियां दे दी गई हैं। यह तेजी से हिंसक इस्लामवादियों का गढ़ बनता जा रहा है। बिना जनादेश वाली अंतरिम सरकार बहुलतावादी और समन्वयवादी परंपराओं को खत्म कर बांग्लादेश को इस्लामिक राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है।
बांग्लादेश के अटॉर्नी जनरल मोहम्मद असदुज्जमा ने 90 फीसदी मुस्लिम जनसंख्या को आधार बनाते हुए देश के संविधान से धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द हटाने की सिफारिश की है। यह बांग्लादेश का धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र से इस्लामिक राष्ट्र की ओर बढऩे का संकेत है।

बांग्लादेश में सैन्य तानाशाह और पूर्ववर्ती खालिदा जिया की सरकार भी ऐसा चाहती थी। सरकारी सूत्रों का कहना है कि अंतरिक सरकार के रहते बीएनपी शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग का अस्तित्व खत्म करने के लिए पूरी ताकत लगा रही है। इनके निशाने पर अल्पसंख्यक हिंदू और ईसाई भी हैं।

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