Wednesday, December 3, 2025

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90 लाख रुपये में मिलेगा H-1B वीजा… ट्रंप के फैसले ने भारतीयों के लिए खड़ी कर दी मुसीबत

नई दिल्ली। अमेरिकी वीजा प्रणाली में हालिया बदलाव ने भारतीय आईटी पेशेवरों और कामकाजी युवाओं की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन द्वारा लागू किए गए नए नियमों और सख्ती के चलते अब एच-1बी वीजा हासिल करना न सिर्फ मुश्किल हो गया है, बल्कि इसकी कीमत भी आसमान छू रही है। जानकारों का कहना है कि भारत से अमेरिका में नौकरी करने का सपना देखने वालों को अब करीब 90 लाख रुपये तक खर्च करने पड़ सकते हैं।

एच-1बी वीजा क्या है और क्यों जरूरी है?
एच-1बी वीजा अमेरिका का वह विशेष वर्क परमिट है, जिसके जरिए विदेशी पेशेवर वहां की कंपनियों में काम कर सकते हैं। आईटी सेक्टर और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में यह वीजा सबसे लोकप्रिय है। भारत से हर साल हजारों युवा इस वीजा पर अमेरिका जाते रहे हैं।

ट्रंप प्रशासन का सख्त रुख
रिपोर्ट्स के मुताबिक, ट्रंप प्रशासन ने एच-1बी वीजा प्रक्रिया को जटिल बना दिया है। वीजा की संख्या सीमित कर दी गई है, साथ ही चयन की शर्तें और कड़ी कर दी गई हैं। इसके अलावा कंपनियों को विदेशी कर्मचारियों को स्पॉन्सर करने के लिए अधिक शुल्क और गारंटी देनी पड़ रही है। यही कारण है कि वीजा प्रक्रिया का खर्च कई गुना बढ़ गया है।

भारतीयों पर सबसे ज्यादा असर
इस फैसले का सबसे ज्यादा असर भारतीयों पर पड़ा है। अमेरिका की सिलिकॉन वैली और अन्य आईटी हब्स में भारतीय पेशेवरों की बड़ी हिस्सेदारी है। अब महंगी प्रक्रिया और सीमित अवसरों की वजह से कई योग्य उम्मीदवार पीछे हटने को मजबूर हैं। कई मामलों में बिचौलियों और एजेंटों के जरिए वीजा हासिल करने की कीमत 90 लाख रुपये तक पहुंच गई है।

विशेषज्ञों की राय
श्रम और प्रवासन मामलों के जानकारों का कहना है कि अमेरिकी प्रशासन के इस कदम से वहां की कंपनियों को भी नुकसान होगा, क्योंकि भारतीय आईटी विशेषज्ञों और टेक प्रोफेशनल्स पर अमेरिकी उद्योग काफी हद तक निर्भर करता है। वहीं, भारत में भी इसका असर दिखेगा क्योंकि युवाओं के लिए अमेरिकी नौकरी का सपना अब और महंगा व जटिल हो गया है।

राजनीतिक सन्देश भी छिपा
विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप प्रशासन यह कदम घरेलू वोट बैंक साधने और “अमेरिकन जॉब्स फर्स्ट” नीति को लागू करने के लिए उठा रहा है। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि यह नीति अमेरिका की वैश्विक प्रतिस्पर्धा क्षमता को कमजोर करेगी।

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