केंद्र सरकार के 49 लाख से अधिक कर्मचारियों और करीब 65 लाख पेंशनरों को उस समय निराशा का सामना करना पड़ा, जब यह स्पष्ट हो गया कि महंगाई भत्ता (DA) और महंगाई राहत (DR) को मूल वेतन में फिलहाल विलय नहीं किया जाएगा। लंबे समय से इस फैसले की उम्मीद कर रहे कर्मचारियों को इस घोषणा से बड़ा झटका लगा है, क्योंकि वे वेतन संरचना में बदलाव और भविष्य में मिलने वाले लाभों में वृद्धि की आशा लगाए बैठे थे।
कर्मचारी संगठनों के प्रतिनिधियों का कहना है कि DA/DR का मूल वेतन में विलय न होने से वेतन निर्धारण और भत्तों पर इसका सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा, जिसकी उन्हें उम्मीद थी। महंगाई के बढ़ते दबाव के चलते कर्मचारी लगातार यह मांग कर रहे थे कि मौजूदा व्यवस्था को संशोधित कर वेतन में वास्तविक वृद्धि सुनिश्चित की जाए। कर्मचारियों का मानना है कि यदि DA और DR को बेसिक पे में जोड़ा जाता, तो न केवल उनकी ग्रॉस सैलरी बढ़ती, बल्कि भविष्य के भत्तों और पेंशन की गणना पर भी लाभकारी प्रभाव पड़ता।
पेंशनरों ने भी इस निर्णय पर असंतोष व्यक्त किया है। उनका कहना है कि लगातार बढ़ती महंगाई के दौर में DA/DR का विलय न होना उनके लिए आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण परिस्थिति पैदा कर रहा है। पेंशनभोगी संगठनों ने केंद्र से इस फैसले पर पुनर्विचार करने की अपील की है और तर्क दिया है कि वरिष्ठ नागरिकों के लिए खर्चों को संभालना पहले से ही कठिन होता जा रहा है।
इस बीच, वित्त मंत्रालय से जुड़े सूत्रों के अनुसार, DA/DR का विलय एक व्यापक और तकनीकी प्रक्रिया है, जिसके लिए विस्तृत वित्तीय मूल्यांकन की आवश्यकता होती है। सरकार का कहना है कि फिलहाल इस कदम के लिए कोई तात्कालिक योजना नहीं है, हालांकि भविष्य में परिस्थितियों के अनुसार इस पर विचार किया जा सकता है।
कर्मचारी यूनियनों ने सरकार से पुनः वार्ता की मांग की है और कहा है कि वे जल्द ही बैठक बुलाकर अगले कदम तय करेंगे। संगठनों ने संकेत दिया है कि यदि उनकी मांगों पर सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिलती, तो वे आंदोलन तेज करने का विकल्प भी चुन सकते हैं।





