पश्चिमी कनाडा, अमेरिका और स्विट्जरलैंड के ग्लेशियर बेहद तेज़ी से पिघल रहे हैं। 2021 से 2024 के बीच इन तीन देशों में कुल ग्लेशियर बर्फ का 12 फीसदी हिस्सा खत्म हो चुका है। शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि यदि यही रफ्तार रही, तो जिन ग्लेशियरों के बारे में हम सोचते हैं कि वे 50 वर्षों तक रहेंगे, वे महज 30 वर्षों में ही इतिहास बन सकते हैं। नेचर में प्रकाशित ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय के नेतृत्व में हुए एक नए अंतरराष्ट्रीय अध्ययन ने इस चौंकाने वाली सच्चाई से पर्दा उठाया है। इस अध्ययन से पता चला है कि 21वीं सदी के पहले दशक की तुलना में 2010 से 2019 के बीच ग्लेशियरों का पिघलना दोगुना हो गया। शोध दिखाता है कि उसके बाद के वर्षों में, ग्लेशियरों का पिघलना खतरनाक रफ्तार से जारी रहा। ग्लेशियरों के इस बड़े नुकसान के पीछे प्रमुख कारण गर्म और शुष्क मौसम को बताया गया है।सिर्फ मौसम ही नहीं, बल्कि पर्यावरणीय प्रदूषण भी इस त्रासदी का कारक बन रहा है। स्विट्जरलैंड में सहारा रेगिस्तान से आई धूल और अमेरिका-कनाडा में जंगल की आग से फैली राख ने ग्लेशियरों को काला कर दिया। यह काला रंग सूर्य की गर्मी को अधिक सोखता है और पिघलने की प्रक्रिया को तीव्र बना देता है।
ग्लेशियरों के बड़े पैमाने पर नुकसान को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने 2025 को अंतरराष्ट्रीय ग्लेशियर संरक्षण वर्ष घोषित किया है। यह पहल यूनेस्को, डब्ल्यूएमओ और 35 देशों के 200 से अधिक संगठनों से समर्थित है। इस वर्ष का सर्वश्रेष्ठ ग्लेशियर पुरस्कार शुरू किया है। इसके पहला विजेता अमेरिका के वॉशिंगटन में स्थित दक्षिण कैस्केड ग्लेशियर बना है।