प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर में देश की सबसे चुनौतीपूर्ण रेलवे परियोजना — उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेलवे लिंक (USBRL) के सबसे अहम पड़ाव चिनाब रेलवे ब्रिज का उद्घाटन करेंगे। यह 1315 मीटर लंबा ब्रिज अब केवल एक इंजीनियरिंग चमत्कार नहीं रह गया है, बल्कि वह जीवनरेखा बन गया है जो कश्मीर घाटी को स्थायी रूप से भारतीय रेल नेटवर्क से जोड़ता है। यह ब्रिज अब कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक की सीधी यात्रा को संभव बनाएगा।
चिनाब नदी पर बना यह पुल केवल ऊंचाई में ही नहीं, बल्कि अपनी ताकत और डिज़ाइन के लिहाज से भी विश्वस्तरीय है। एफिल टावर से ऊंचा यह ब्रिज 359 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और इसे इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि यह 266 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली हवाओं, 8 रिक्टर स्केल तक के भूकंप और भारी धमाकों को भी सहन कर सकता है। तकनीक, धैर्य और संकल्प की यह मिसाल अब जम्मू-कश्मीर की भौगोलिक व सामाजिक सीमाओं को भी पार कर रही है।
भारत में रेलवे की यात्रा 1897 में जम्मू से सियालकोट के बीच की गई पहली रेल लाइन से शुरू हुई थी। हालांकि, 1947 के विभाजन के बाद सियालकोट पाकिस्तान का हिस्सा बन गया, जिससे जम्मू-कश्मीर की रेल संपर्कता बाधित हो गई। लगभग तीन दशकों तक जम्मू क्षेत्र देश के अन्य हिस्सों से केवल सड़क मार्ग से ही जुड़ा रहा। वर्ष 1975 में पठानकोट से जम्मू के बीच रेल सेवा शुरू हुई और इसके बाद 1983 में जम्मू-उधमपुर प्रोजेक्ट पर काम शुरू हुआ। 1994 में इस रेल लाइन को श्रीनगर और बारामूला तक विस्तारित करने का निर्णय लिया गया, जिसे 1995 में औपचारिक मंजूरी मिली। यह एक महत्वाकांक्षी योजना थी, जिसकी अनुमानित लागत उस समय 2500 करोड़ रुपये आंकी गई थी।
2004 में जम्मू-उधमपुर रेल मार्ग पूरा हुआ, जिसमें अनुमानित लागत से दस गुना ज्यादा खर्च यानी करीब 515 करोड़ रुपये लगे। इस मार्ग में 20 बड़ी सुरंगें और 158 पुल बनाए गए, जिनमें से एक पुल की ऊंचाई 77 मीटर थी। 2005 में चिनाब नदी पर पुल के निर्माण के आदेश के साथ ही USBRL को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा दिया गया, ताकि इसे विशेष प्राथमिकता और संसाधन मिल सकें। आज इस परियोजना का कुल खर्च 35,000 करोड़ रुपये से अधिक हो चुका है, जिसमें से लगभग 1,500 करोड़ रुपये केवल चिनाब ब्रिज के निर्माण में खर्च हुए।
इस ब्रिज की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि अब जम्मू-कश्मीर को शेष भारत से स्थायी रेल संपर्क प्राप्त हो गया है। इससे पहले ट्रेनें केवल जम्मू तवी तक जाती थीं और इसके आगे श्रीनगर जाने के लिए यात्रियों को सड़क मार्ग से कठिन 350 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता था, जो बर्फबारी में अक्सर बंद हो जाता था। चिनाब ब्रिज की बदौलत अब यह बाधा समाप्त हो गई है।
इंजीनियरिंग के लिहाज से चिनाब ब्रिज को विश्व के सबसे उन्नत तकनीकों से तैयार किया गया है। सामान्य पुलों की तुलना में यह स्टील आर्क तकनीक से बनाया गया है, जो बहुत ही गहरी घाटी में स्थित चिनाब नदी के ऊपर फिट बैठती है। कनाडा की कंपनी WSP द्वारा डिज़ाइन किया गया यह पुल 17 स्टील के स्तंभों और एक विशाल आर्क (धनुषाकार ढांचे) पर टिका हुआ है। पुल का आर्क 469 मीटर के दायरे में फैला है, जो पहाड़ी के दोनों ओर की चट्टानों पर टिकाया गया है। इस निर्माण कार्य के लिए 3000 फीट की ऊंचाई तक पहुंचने वाली विशेष केबल क्रेन्स का इस्तेमाल किया गया, ताकि स्टील के भारी हिस्सों को सटीकता के साथ फिट किया जा सके।
इस पुल का सामरिक महत्व भी कम नहीं है। सीमावर्ती क्षेत्रों में सेना की तेज़ मूवमेंट, आपातकालीन सामग्री की आपूर्ति और आपदा प्रबंधन के लिहाज से यह पुल भारत को नई शक्ति देगा। इसके साथ ही यह पुल पर्यटन, व्यापार और सामाजिक संपर्कों को भी एक नई दिशा देगा।
22 सालों की लंबी प्रतीक्षा, इंजीनियरिंग के असंभव लगने वाले प्रयोग और हजारों कुशल श्रमिकों के समर्पण के बाद आज यह पुल भारत के संकल्प, तकनीकी सामर्थ्य और दूरदृष्टि का प्रतीक बन गया है। चिनाब ब्रिज अब केवल एक इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि भारत की रणनीतिक और सांस्कृतिक एकता का सेतु बन चुका है।