धरती के उत्तरी हिस्से में आने वाले वर्षों में पेड़ों की हरियाली इतनी तेजी से बढ़ सकती है कि यह आज के मुकाबले 2.25 गुना ज्यादा हो जाएगी। सुनने में यह बात सुकून देने वाली लगती है, लेकिन इसके पीछे छिपे खतरे उतने ही गंभीर हैं। एक ताजा वैश्विक अध्ययन ने यह खुलासा किया है कि यह अवांछित हरियाली जलवायु परिवर्तन की कीमत पर हासिल होगी और यही सबसे बड़ी चिंता है। ग्लोबल चेंज बायोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित शोध के अनुसार, उत्तरी गोलार्ध वर्ष 2100 तक हरियाली की चादर ओढ़ सकता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग, कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता से वहां की बंजर जमीन पर वनस्पतियों का विस्तार होगा। इस अनुमान तक पहुंचने के लिए शोधकर्ताओं ने जीजीएमएओसी नामक एक उन्नत मॉडल का उपयोग किया, जिसमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी मशीन लर्निंग की छह अलग-अलग तकनीकों को मिलाकर भविष्य की वनस्पति वृद्धि का खाका तैयार किया गया। इस मॉडल ने लीफ एरिया इंडेक्स (पत्तियों से ढकी जमीन की माप) के आधार पर बताया कि उत्तरी क्षेत्रों में यह आंकड़ा 1982 से 2014 की तुलना में 2.25 गुना तक बढ़ सकता है।उत्तरी गोलार्ध में एशिया का अधिकांश भाग शामिल है। इसमें भारत, चीन, जापान, पाकिस्तान, नेपाल और रूस जैसे देश आते हैं। पूरा यूरोप इसी गोलार्ध में स्थित है, जिसमें फ्रांस, जर्मनी, इटली, यूनाइटेड किंगडम और स्वीडन जैसे देश शामिल हैं। उत्तरी अमेरिका का पूरा महाद्वीप, अमेरिका, कनाडा और मैक्सिको भी उत्तरी गोलार्ध में आता है। इसके अलावा अफ्रीका का उत्तरी भाग जैसे मिस्र, अल्जीरिया, मोरक्को और लीबिया, तथा दक्षिण अमेरिका का उत्तरी हिस्सा जैसे वेनेजुएला, कोलंबिया और इक्वाडोर भी इसी गोलार्ध में स्थित हैं। आर्कटिक महासागर, उत्तरी अटलांटिक और उत्तरी प्रशांत महासागर के हिस्से भी इसमें शामिल हैं।
हिमालय क्षेत्र भी पर्माफ्रॉस्ट और ग्लेशियरों वाला क्षेत्र है। वहां की पारिस्थितिकीय गड़बड़ी से बाढ़, भूस्खलन और मौसम चक्रों में असंतुलन हो सकता है। हरियाली का असामान्य फैलाव कृषि चक्र और जैव विविधता को प्रभावित कर सकता है।