Wednesday, October 22, 2025

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2028 तक पूरी तरह रूसी ऊर्जा आयात बंद करने का एलान: यूरोपीय संघ

ब्रुसेल्स।
रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच यूरोप की ऊर्जा नीति में ऐतिहासिक बदलाव देखने को मिला है। यूरोपीय संघ (EU) ने मंगलवार को घोषणा की कि वह साल 2028 तक रूस से तेल, गैस और कोयले का आयात पूरी तरह बंद कर देगा। यह निर्णय रूस पर दबाव बढ़ाने और यूरोप को ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में उठाया गया सबसे बड़ा कदम माना जा रहा है।
यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने इस निर्णय की घोषणा करते हुए कहा, “अब समय आ गया है कि यूरोप अपनी ऊर्जा सुरक्षा खुद सुनिश्चित करे। हम रूस की आपूर्ति पर निर्भरता खत्म करेंगे और स्वच्छ, सतत एवं वैकल्पिक ऊर्जा की ओर तेजी से बढ़ेंगे।”

रूस, यूरोपीय देशों के लिए लंबे समय से सबसे बड़ा ऊर्जा आपूर्तिकर्ता रहा है। लेकिन 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद से ही यूरोपीय संघ ने क्रमिक रूप से रूसी ऊर्जा पर निर्भरता घटाने की रणनीति अपनाई थी। अब 2028 तक इसे शून्य करने का लक्ष्य तय कर दिया गया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस निर्णय से रूस की ऊर्जा निर्यात आय पर बड़ा असर पड़ेगा, क्योंकि यूरोपीय बाजार उसकी सबसे बड़ी आमदनी का स्रोत रहा है।

यूरोपीय संघ ने बताया कि आने वाले वर्षों में वह नवीकरणीय ऊर्जा, हाइड्रोजन, परमाणु ऊर्जा और एलएनजी (LNG) जैसे वैकल्पिक स्रोतों पर निवेश बढ़ाएगा। साथ ही नॉर्वे, अमेरिका, कतर और अफ्रीकी देशों के साथ ऊर्जा साझेदारी को भी विस्तार दिया जाएगा।
यूरोपीय आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, सदस्य देश ऊर्जा दक्षता, हरित प्रौद्योगिकी और घरेलू उत्पादन को बढ़ाने पर भी फोकस करेंगे, ताकि किसी भी बाहरी निर्भरता से मुक्त होकर स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके।

यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि यह कदम रूस की युद्ध वित्तीय व्यवस्था को कमजोर करेगा। उन्होंने ट्वीट किया, “यह यूरोप की नैतिक और रणनीतिक जीत है। ऊर्जा को अब हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा।”

हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि इस कदम से यूरोपीय देशों को शुरुआती वर्षों में ऊर्जा कीमतों में वृद्धि और आपूर्ति दबाव झेलना पड़ सकता है। इसके बावजूद अधिकांश सदस्य देशों ने इसे दीर्घकालिक रणनीतिक हितों के अनुरूप बताया है।
यूरोपीय संघ का यह फैसला न केवल रूस के खिलाफ एक मजबूत आर्थिक संदेश है, बल्कि यह संकेत भी देता है कि आने वाले दशक में यूरोप ऊर्जा क्षेत्र में हरित और आत्मनिर्भर भविष्य की ओर निर्णायक कदम बढ़ा चुका है।

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