Wednesday, October 29, 2025

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‘हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ताकत का विस्तार करेगा भारत’, नौसेना प्रमुख बोले- 50 देश जोड़ने का लक्ष्य

नई दिल्ली। भारतीय नौसेना के प्रमुख एडमिरल दिनेश के. त्रिपाठी ने मंगलवार को आयोजित इंडो-पैसिफिक रीजनल डायलॉग 2025 के उद्घाटन सत्र में कहा कि भारत आने वाले वर्षों में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी समुद्री उपस्थिति को एक नए स्तर पर ले जाने जा रहा है। उन्होंने बताया कि भारत की योजना करीब 50 देशों को इस अभियान में शामिल करने की है, ताकि समुद्री सुरक्षा, सहयोग और क्षमता-विकास को और मजबूत किया जा सके।

एडमिरल त्रिपाठी ने कहा कि इस क्षेत्र में तेजी से बदलते हालात और चुनौतियाँ — जैसे समुद्री व्यापार की अनिश्चितता, गैर-कानूनी मत्स्य पालन, तस्करी, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय दबाव — साझा कार्रवाई और सहयोग की मांग करते हैं। उन्होंने भारत की नई समुद्री दृष्टि को “MAHASAGAR” (Mutual and Holistic Advancement for Security and Growth Across Regions) के रूप में परिभाषित किया, जिसे पहले की “SAGAR” नीति का विस्तारित रूप बताया गया है।

इस संवाद में लगभग 30 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। एडमिरल त्रिपाठी ने स्पष्ट किया कि भारत की मंशा 50 देशों तक पहुँचने की है, ताकि इन देशों के साथ साझा नौसैनिक अभ्यास, प्रशिक्षण, क्षमता-विकास और तकनीकी सहयोग को नए आयाम दिए जा सकें। इस साझेदारी नेटवर्क में दक्षिण-पूर्व एशिया के देश, अफ्रीका के तटीय राष्ट्र और द्वीप-राज्य प्रमुख रूप से शामिल होंगे।

भारत का मानना है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र केवल एक भौगोलिक परिभाषा नहीं, बल्कि सुरक्षा और विकास का समुद्री क्षेत्र है, जहाँ व्यापारिक मार्ग, ऊर्जा परिवहन, पर्यावरणीय चुनौतियाँ और सामरिक साझेदारी एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं। इस पहल का उद्देश्य केवल नौसैनिक विस्तार नहीं, बल्कि मित्र देशों के साथ साझा क्षमता निर्माण और सहयोग को बढ़ावा देना है।

रणनीतिक दृष्टि से हिंद-प्रशांत क्षेत्र विश्व समुद्री व्यापार का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। भारत इस क्षेत्र में स्थिरता, सुरक्षा और साझेदारी को मजबूत करने की दिशा में निर्णायक कदम बढ़ा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह कदम भारत की रणनीतिक भूमिका को रक्षा से आगे बढ़ाकर सहयोग और विकास के क्षेत्र तक विस्तारित करने का संकेत है।

हालाँकि, 50 देशों को इस मिशन से जोड़ना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है। इसके लिए नीति-संगति, संसाधनों की साझेदारी, तकनीकी सहयोग और राजनयिक समन्वय की आवश्यकता होगी। आने वाले समय में यह देखना अहम होगा कि इस पहल के समय-निर्धारण, क्रियान्वयन और प्रभाव-आकलन के लिए भारत किस प्रकार की रूपरेखा तैयार करता है।

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