Thursday, November 20, 2025

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हर साल 2 से 3.5 करोड़ मीट्रिक टन मीथेन का अतिरिक्त उत्सर्जन

हवा में सल्फर की मात्रा कम होने से पीटलैंड, वेटलैंड और दलदली भूमि से प्राकृतिक रूप से होने वाले मीथेन उत्सर्जन में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हुई है। यह निष्कर्ष साइंस एडवांस जर्नल में प्रकाशित एक शोध में सामने आया है। अध्ययन में बताया गया है कि स्वच्छ वायु नीतियों के कारण वैश्विक स्तर पर सल्फर उत्सर्जन में कमी आई, लेकिन बढ़ते तापमान के प्रभाव के कारण दलदली भूमि में मीथेन उत्पादन पर रोक नहीं लग पाई। शोध के अनुसार हर साल आर्द्रभूमि से 2 से 3.5 करोड़ मीट्रिक टन अतिरिक्त मीथेन का उत्सर्जन हो रहा है। मीथेन, जो वातावरण में गर्मी को बनाए रखने वाली सबसे प्रभावी ग्रीनहाउस गैसों में से एक है, दुनिया भर की आर्द्रभूमि में उत्पन्न होती है। सल्फर का प्राकृतिक आर्द्रभूमि पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है जो मीथेन उत्सर्जन को सीमित करता है। दूसरी ओर सीओ2 उन पौधों की वृद्धि को बढ़ावा देता है जो मीथेन उत्पन्न करने वाले सूक्ष्मजीवों के लिए भोजन उपलब्ध कराते हैं, जिससे मीथेन उत्पादन बढ़ जाता है। शोधकर्ताओं के अनुसार वायुमंडलीय सल्फर को कम करने के लिए बनाई गई प्रभावी नीतियों का एक अनपेक्षित परिणाम यह हुआ कि आर्द्रभूमि में मीथेन उत्पादन को रोकने वाला सल्फर का प्रभाव समाप्त हो गया। बढ़ते सीओ2 के स्तर के कारण यह प्रभाव और तेज हुआ जिससे उत्सर्जन में दोगुनी तेजी आई।

शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि जलवायु प्रणाली की जटिलता को समझना जरूरी है, क्योंकि इन जैव-रासायनिक प्रक्रियाओं को भविष्य के मीथेन उत्सर्जन के आकलन में पर्याप्त रूप से शामिल नहीं किया गया था। अध्ययन इस बात पर जोर देता है कि ग्रीनहाउस गैसों के संभावित प्रभावों को समझने के लिए इन पहलुओं को गंभीरता से विचार में लेना आवश्यक है। इसका मतलब है कि मीथेन उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए मौजूदा वैश्विक लक्ष्यों को और अधिक कठोर बनाने की जरूरत होगी।

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