नई दिल्ली। भारत से बेहतर अवसरों और जीवनशैली की तलाश में विदेश जाने वालों की संख्या में बड़ा उछाल देखा गया है। केंद्र सरकार ने संसद में आधिकारिक आंकड़े पेश करते हुए खुलासा किया है कि पिछले कुछ वर्षों से औसतन 2 लाख भारतीय हर साल अपनी नागरिकता छोड़ रहे हैं। गृह मंत्रालय द्वारा जारी इन आंकड़ों ने देश के भीतर ‘ब्रेन ड्रेन’ (प्रतिभा पलायन) और बदलते सामाजिक रुझानों पर एक नई बहस छेड़ दी है।
सरकारी आंकड़ों की मुख्य बातें
- नागरिकता छोड़ने की रफ़्तार: विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2021 के बाद से नागरिकता छोड़ने वाले भारतीयों की संख्या में तेजी आई है। अकेले वर्ष 2023 में 2.16 लाख से अधिक लोगों ने भारतीय पासपोर्ट सरेंडर किया।
- पसंदीदा ठिकाने: भारतीय नागरिकों के लिए अमेरिका (USA) सबसे पहली पसंद बना हुआ है। इसके बाद कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, और यूनाइटेड किंगडम (UK) जैसे देशों का नंबर आता है, जहाँ भारतीय स्थायी निवास और नागरिकता ले रहे हैं।
- यूरोपीय देशों का बढ़ता आकर्षण: अमेरिका और कनाडा के अलावा अब जर्मनी, स्वीडन और नीदरलैंड जैसे यूरोपीय देशों को भी भारतीय पेशेवर अपना नया ठिकाना बना रहे हैं।
भारतीय नागरिक अपनी नागरिकता क्यों छोड़ रहे हैं?
विशेषज्ञों और सरकारी इनपुट के अनुसार, इसके पीछे कई प्रमुख कारण हैं:
- बेहतर आर्थिक अवसर: उच्च शिक्षा प्राप्त पेशेवर और तकनीकी विशेषज्ञ विदेशों में मिलने वाले ऊंचे वेतन पैकेज की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
- जीवन स्तर (Quality of Life): बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं, प्रदूषण मुक्त वातावरण और सामाजिक सुरक्षा की तलाश में संपन्न वर्ग विदेशों का रुख कर रहा है।
- दोहरी नागरिकता का अभाव: चूंकि भारत ‘दोहरी नागरिकता’ (Dual Citizenship) की अनुमति नहीं देता, इसलिए किसी दूसरे देश का पासपोर्ट लेने के लिए भारतीयों को अपनी मूल नागरिकता छोड़नी पड़ती है। हालांकि, सरकार उन्हें OCI (Overseas Citizen of India) कार्ड की सुविधा देती है।
सरकार का पक्ष और वैश्विक प्रभाव
विदेश मंत्री ने पहले भी स्पष्ट किया है कि भारतीयों का वैश्विक स्तर पर फैलना भारत की ‘सॉफ्ट पावर’ को बढ़ाता है। विदेशों में बसे भारतीय (Diaspora) न केवल भारत में रिकॉर्ड ‘रेमिटेंस’ (विदेशी मुद्रा) भेजते हैं, बल्कि वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था में भारत के प्रभाव को भी मजबूत करते हैं।





