Friday, July 4, 2025

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हरियाणा में काम आई सोशल इंजीनियरिंग

आरक्षण और संविधान पर खतरे को लेकर विपक्ष की बनाई धारणा के कारण लोकसभा चुनाव में पहुंचे नुकसान के बाद जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के नतीजे भाजपा के लिए संजीवनी से कम नहीं हैं। हरियाणा में जीत की हैट्रिक और जम्मू-कश्मीर में पहले के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन से न सिर्फ पार्टी का आत्मविश्वास बढ़ेगा, बल्कि अगले कुछ महीनों में महाराष्ट्र व झारखंड के चुनाव के अलावा यूपी में अहम माने जाने वाले दस विधानसभा सीटों के उपचुनाव पर भी इसका असर पड़ना तय है। ये नतीजे लोकसभा चुनाव के बाद कार्यकर्ताओं में उपजी निराशा को दूर कर ब्रांड मोदी को फिर से चमकाने में मददगार माने जा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में भाजपा के हाथ सत्ता की चाबी भले ही न लगी हो, लेकिन यह साफ हो गया कि देश में हिंदुत्व और राष्ट्रवादी राजनीति की धार कुंद नहीं पड़ी है। अनुच्छेद 370 व 35ए के खात्मे के बाद भी भाजपा जम्मू संभाग में फिर अजेय रही है। जाहिर है, भविष्य में कश्मीर घाटी की राजनीति के करवट लेने पर पार्टी वहां चमत्कार करने की स्थिति में रहेगी। यही नहीं, भारी मतदान के साथ मोदी सरकार दुनिया को बड़ा संदेश देने में भी सफल रही है। भाजपा को असली राहत हरियाणा के नतीजों ने दी, क्योंकि जिस राज्य में लोकसभा चुनाव में पार्टी ने आधी सीटें गंवा दी थीं, वहां उसे अपने दम पर दूसरी बार बहुमत मिला है। यह लोकसभा चुनाव में छिटके ओबीसी व दलित वर्ग का विश्वास फिर हासिल करने से संभव हुआ। पार्टी गैरजाट बिरादरियों को साधने में भी सफल रही। चुनाव की कमान परोक्ष रूप से संघ ने संभाली थी। दोनों राज्यों में संघ ने निराश कार्यकर्ताओं को घर से निकालने, चुनावी प्रबंधन, टिकट वितरण और रणनीति में हस्तक्षेप किया। इससे कोर मतदाताओं को बूथ तक पहुंचाने में सफलता मिली। संघ से खटास की खबरों के बीच ये नतीजे दोनों को करीब लाएंगे।

नतीजे ऐसे समय आए हैं, जब अगले महीने झारखंड-महाराष्ट्र में चुनाव की संभावना है। नए साल में दिल्ली और अंत में बिहार में चुनाव होंगे। महाराष्ट्र में सत्ता की चाबी ओबीसी, तो झारखंड में अनुसूचित जनजाति के पास है। दिल्ली में दलितों की बड़ी आबादी है तो बिहार की पहचान ही जातीय राजनीति है।

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