पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने शहबाज शरीफ सरकार को झटका देते हुए संसद द्वारा उन कानूनों को पिछली तारीख से लागू करने पर रोक लगा दी है, जिनसे लोगों के अधिकार प्रभावित होते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राष्ट्रीय या प्रांतीय असेंबली ऐसे कानून नहीं बना सकतीं, जो लोगों को संविधान में मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हों। पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पाकिस्तान की नेशनल असेंबली के स्पीकर अयाज सादिक द्वारा चुनाव आयोग को भेजे पत्र के बाद सामने आया है। इस पत्र में अयाज सादिक ने चुनाव आयोग से मांग की कि संसद ने हाल ही में चुनाव कानून में जो बदलाव किए हैं, उन्हें पिछली तारीख से लागू किया जाए। इन बदलावों के तहत निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव में जीत के बाद किसी राजनीतिक पार्टी में शामिल नहीं हो सकेंगे। सरकार के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई। जिस पर सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस सैयद मंसूर अली शाह ने फैसले में कहा कि संविधान का अनुच्छेद 8 संसद और प्रांतीय विधानसभाओं को ऐसे किसी भी कानून को बनाने से रोकता है, जो लोगों के संवैधानिक अधिकारों को प्रभावित करते हैं। न्यायमूर्ति शाह ने कहा कि यह निषेध भावी और पूर्वव्यापी दोनों कानूनों पर समान रूप से लागू होता है। पूर्वव्यापी कानून पिछले समय की बात करते हैं और कानून बनने से पहले हुई चीजों के लिए नियमों को बदलते हैं। दूसरी ओर, भावी कानून भविष्य में लागू होने वाले नियमों के बारे में बताते हैं।
दरअसल पाकिस्तान सरकार ने ITO प्रावधान के तहत 1 जुलाई, 2010 और 20 जून, 2021 के बीच नई मशीनरी खरीदने और स्थापित करने वाले उद्योगों को 10 प्रतिशत का कर क्रेडिट देने का एलान किया था, लेकिन बाद में वित्त अधिनियम के जरिए बदलाव करते हुए सरकार ने इस कानून को 2021 के बजाय 2019 तक लागू रखने का प्रावधान कर दिया और उद्योगों के कर क्रेडिट में कटौती कर इसे पांच प्रतिशत कर दिया। इसी फैसले के खिलाफ लोगों ने सिंध उच्च न्यायालय में अपील की। सिंध उच्च न्यायालय ने भी सरकार के प्रावधान को खारिज कर दिया। उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ राजस्व आयुक्त ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। अब सुप्रीम कोर्ट से भी पाकिस्तान सरकार को झटका लगा है और सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के फैसले को सही माना है।