केंद्र सरकार ने संसद में बृहस्पतिवार को बताया कि उसने चीन की ओर से तिब्बत की यारलुंग त्सांगपो नदी (ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपरी हिस्से) पर विशाल बांध की परियोजना की घोषणा पर गंभीरता से ध्यान दिया है।राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने कहा कि सीमा क्षेत्रों पर नदियों से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर चीन के साथ 2006 में स्थापित संस्थागत विशेषज्ञों के तंत्र के तहत कूटनीतिक माध्यमों से चर्चा की जाती है। विदेश राज्य मंत्री ने यह जवाब ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन की पनबिजली बांध बनाने के फैसले के सवाल पर दिया। इससे भारत और बांग्लादेश में नदी के निचले हिस्से में रहने वाले लाखों लोगों के लिए संकट पैदा होने की आशंका है।मंत्री ने कहा कि 30 दिसंबर 2024 को भारत ने इस परियोजना के बारे में अपनी चिंताओं को औपचारिक रूप से चीन से व्यक्त किया था। इसके अलावा विदेश सचिव विक्रम मिस्री की बीजिंग यात्रा के दौरान भी यह मुद्दा उठाया था। इसमें दोनों देशों ने जल्द ही विशेषज्ञों की बैठक बुलाने पर सहमति व्यक्त की थी। बैठक में हाइड्रोलॉजिकल डाटा साझा करने और ट्रांस-बॉर्डर नदियों से संबंधित अन्य सहयोग पर चर्चा होगी।
मंत्रालय से यह भी पूछा गया कि भारत पूर्वोत्तर राज्यों में पारिस्थितिकी और जल प्रवाह स्थिरता को संबोधित करने और अंतरराष्ट्रीय जल-बंटवारे के सिद्धांतों का पालन सुनिश्चित करने के लिए चीन के साथ बातचीत करने के लिए क्या उपाय कर रहा है।
इस पर राज्य विदेश मंत्री ने कहा कि भारत सरकार अपने हितों की रक्षा के लिए सीमा पार नदियों के मुद्दे पर चीन के साथ बातचीत करना जारी रखने का इरादा रखती है। सरकार ब्रह्मपुत्र नदी से संबंधित सभी घटनाक्रमों पर सावधानीपूर्वक नजर रखती है, जिसमें चीन द्वारा जलविद्युत परियोजनाओं को विकसित करने की योजना भी शामिल है, और हमारे हितों की रक्षा करने के लिए आवश्यक उपाय करती है। उन्होंने कहा कि सरकार जीवन व आजीविका की सुरक्षा के लिए जरूरी कदम उठाएगी। हम चीन के साथ जुड़े रहकर अपने हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं।





