तंबाकू उत्पादों पर नियंत्रण को लेकर केंद्र सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है। सिगरेट, गुटखा, पान मसाला और अन्य तंबाकू आधारित उत्पादों पर टैक्स बढ़ाने के लिए सरकार दो नए विधेयक लेकर आई है। प्रस्तावित संशोधनों के तहत इन उत्पादों पर लागू गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) को मौजूदा 28 प्रतिशत से बढ़ाकर 40 प्रतिशत करने की योजना बनाई गई है। अधिकारियों का कहना है कि यह बदलाव तंबाकू उपभोग में कमी लाने और इससे जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल होगी।
सरकारी सूत्रों के अनुसार इन विधेयकों में तंबाकू उत्पादों पर लगने वाले मुआवजा उपकर (कम्पेंसेशन सेस) के ढांचे में बदलाव का भी प्रस्ताव है, जिससे भारी कर लगाने के बाद इन वस्तुओं की बाजार कीमतों में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि कीमतें बढ़ने से तंबाकू का उपभोग स्वतः कम होगा, खासतौर पर युवाओं और नाबालिगों के बीच। सरकार के अनुसार यह कदम न केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर उठाया गया है, बल्कि भविष्य में स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ने वाले बोझ को कम करने का भी प्रयास है।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने पिछले वर्षों में कैंसर, हृदय रोग और फेफड़ों की समस्याओं से जुड़े आंकड़ों का हवाला देते हुए जोर दिया है कि तंबाकू सेवन भारत में होने वाली करोड़ों मौतों का प्रमुख कारण है। मंत्रालय का कहना है कि टैक्स बढ़ाने से लोगों में तंबाकू उत्पादों की पहुंच कम होगी, जिससे बीमारियों की दर में गिरावट संभव है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी उच्च टैक्स नीति को तंबाकू नियंत्रण का सबसे प्रभावी तरीका मानता है।
विधेयकों को लेकर उद्योग जगत ने अपनी चिंताएँ व्यक्त की हैं। उनका कहना है कि टैक्स में भारी बढ़ोतरी से अवैध सिगरेट और बिना ब्रांड वाले उत्पादों की बिक्री बढ़ सकती है, जिससे सरकार के राजस्व को नुकसान हो सकता है। हालांकि सरकार का तर्क है कि एक सख्त निगरानी तंत्र और बेहतर प्रवर्तन के जरिए इस समस्या पर नियंत्रण किया जा सकता है।
वित्त मंत्रालय ने संकेत दिया है कि जीएसटी परिषद से मंजूरी मिलने के बाद ये बदलाव जल्द ही लागू किए जा सकते हैं। इस बीच, विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि टैक्स वृद्धि के साथ जागरूकता अभियानों को भी मजबूत किया जाए, ताकि लोग तंबाकू के दुष्प्रभावों से अवगत हो सकें।
सरकार के इन कदमों से यह साफ है कि आने वाले समय में तंबाकू उत्पादों का सेवन और महंगा होने वाला है। स्वास्थ्य सुरक्षा और सार्वजनिक हित से जुड़े इस निर्णय को कई स्वास्थ्य संगठनों ने सराहा है, वहीं इसके आर्थिक प्रभावों पर बहस जारी है।





