धूम्रपान केवल धूम्रपान करने वाले के लिए ही घातक नहीं बल्कि उसके आसपास मौजूद लोगों के लिए भी गंभीर खतरा है। नए अध्ययन से पता चला है कि पैसिव स्मोकिंग (सेकेंड हैंड स्मोक) के संपर्क में आने से बच्चों के जीन में बदलाव हो सकते हैं। यह परिवर्तन भविष्य में विभिन्न बीमारियों के खतरे को बढ़ा सकते हैं। बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ के वैज्ञानिकों का अध्ययन प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका एनवायरमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित हुआ है।शोधकर्ताओं के अनुसार, डीएनए में जीन की गतिविधियों को नियंत्रित करने वाले सभी परिवर्तन एपिजीनोम कहलाते हैं। पैसिव स्मोकिंग का अर्थ है कि व्यक्ति स्वयं धूम्रपान न करे, लेकिन आसपास मौजूद तंबाकू के धुएं के संपर्क में आए। हमारा डीएनए शरीर के लिए एक निर्देश पुस्तिका की तरह कार्य करता है और तंबाकू का धुआं इस पुस्तिका की सामग्री (जीन अनुक्रम) को नहीं बदलता, लेकिन इस पर ऐसे निशान छोड़ सकता है जो इन निर्देशों को पढ़ने की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। ऐसे निशानों में से एक को डीएनए मिथाइलेशन कहा जाता है जो यह नियंत्रित करता है कि कौन-से जीन सक्रिय या निष्क्रिय होंगे।भारत सहित कई देशों में सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान पर सख्त प्रतिबंध लगाए गए हैं, लेकिन घरों में बच्चे अभी भी पैसिव स्मोकिंग के शिकार हो रहे हैं। 2004 के आंकड़ों के अनुसार, वैश्विक स्तर पर लगभग 40 फीसदी बच्चे पैसिव स्मोकिंग के संपर्क में आए थे। इस धुएं के कारण फेफड़े और हृदय रोग का खतरा बढ़ सकता है, साथ ही बच्चों के दिमागी विकास और प्रतिरक्षा प्रणाली पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। तंबाकू के धुएं में 7,000 से अधिक रसायन होते हैं, जिनमें से 69 कैंसर पैदा करने वाले तत्व होते हैं।