देश की सबसे बड़ी निजी एयरलाइन इंडिगो इन दिनों अभूतपूर्व संकट से जूझ रही है। लगातार बढ़ते परिचालन अवरोध, तकनीकी दिक्कतें, और वित्तीय दबाव ने कंपनी को ऐसे दौर में ला खड़ा किया है, जहां उसके व्यवसाय पर लगभग 21,000 करोड़ रुपये का गहरा आघात पड़ा है। कभी भारतीय आकाश की बेजोड़ ‘बादशाह’ कही जाने वाली यह एयरलाइन अब संकट के ऐसे भंवर में फंस गई है, जिससे निकलना उसके लिए आसान नहीं दिख रहा।
रिपोर्टों के अनुसार, इंडिगो को हाल के महीनों में भारी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ा है। बड़ी संख्या में उड़ानें रद्द होने, इंजिन से जुड़ी वैश्विक आपूर्ति समस्याओं और उड़ानों के नियमित संचालन में आ रही अड़चनों ने कंपनी की कार्यक्षमता पर सीधा असर डाला है। इससे न केवल यात्रियों को दिक्कतों का सामना करना पड़ा, बल्कि एयरलाइन की साख पर भी असर पड़ा है। लगातार हो रही इन बाधाओं के कारण इंडिगो को राजस्व में बड़े पैमाने पर गिरावट झेलनी पड़ी है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इंडिगो का मौजूदा संकट सिर्फ एक तकनीकी समस्या नहीं, बल्कि एक संरचनात्मक चुनौती भी है। विमानन क्षेत्र में बढ़ती प्रतिस्पर्धा, रखरखाव लागत में बढ़ोतरी और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की अनिश्चितता ने कंपनी को कमजोर कर दिया है। व्यापक बॉर्डरलाइन लोसेस और सीमित विकल्पों के चलते इंडिगो पर वित्तीय दबाव बढ़ता जा रहा है। इसके अलावा, नए विमानों की डिलीवरी में देरी और बदले हुए नियमों ने भी मुश्किलें बढ़ाई हैं।
उद्योग विश्लेषकों का कहना है कि यदि हालात जल्द नहीं सुधरे, तो इसका असर केवल कंपनी तक सीमित नहीं रहेगा। भारतीय विमानन क्षेत्र, जो पहले ही महंगी ईंधन लागत और कड़ी प्रतिस्पर्धा से जूझ रहा है, इंडिगो के संकट से और अस्थिर हो सकता है। वहीं यात्रियों के लिए किराए बढ़ने और सेवाओं में कटौती जैसी नई चुनौतियाँ उभर सकती हैं।
इन सबके बीच यह सवाल उठने लगा है कि क्या इंडिगो अपने पुराने वर्चस्व की ओर लौट पाएगी, या फिर यह संकट उसके अब तक के सबसे कठिन दौर की शुरुआत मात्र है। विशेषज्ञों का कहना है कि कंपनी को प्रबंधन सुधार, तकनीकी दक्षता और रणनीतिक पुनर्गठन की दिशा में तेज कदम उठाने होंगे। फिलहाल, देश की सबसे बड़ी एयरलाइन अपनी अब तक की सबसे बड़ी परीक्षा से गुजर रही है।





