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Sunday, July 27, 2025

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सकारात्मक उर्जा का श्रोत हैं ऐपण

सकारात्मक उर्जा का श्रोत हैं ऐपण

ऐपण (Aipan) लोक कला देवभूमि उत्तराखंड की बहुमूल्य धरोहर है l ‘ऐपण’, संस्कृत शब्द ‘अर्पण’ और ‘अल्पना’ का local version है, जिसका अर्थ होता है लिखना l उत्तराखंड के घरों की दीवारों, आंगन, देहलियों और पूजा घर में ऐपण का होना यहाँ की समृद्धशाली संस्कृति, विरासत और अनमोल परम्परों का अहम हिस्सा है l

परम्परागत रूप में ऐपण गेरू मिट्टी के उपर चावल के आटे के घोल से हाथों द्वारा बनाई गई विशेष प्रकार की आकृतियाँ को ऐपण का नाम दिया गया हैं l शुभ और मांगलिक कार्यों के अलावा तीज त्योंहारों में कुमांऊ मंडल की महिलाएं अपने घरों के मुख्य दरवाज़े पर ऐपण बनाती आई हैं l

ऐपण को मात्र एक लोक कला मानना गलत होगा l पौराणिक मान्यतों के अनुसार ऐपण पॉजिटिव एनर्जी का श्रोत होते हैं और घर के मुख्य दरवाज़े पर इन्हें बनाने का एक मुख्य कारण नकारात्मक उर्जाओं को घर से दूर रखना और मंगल कार्यों में कोई विघ्न न हो ये सुनिश्चित करना होता है l रंग रूप में अलग लेकिन कुछ ऐसी ही लोक कलाएं तिब्बत, यहूदी धर्म में भी मिल जाएँगी जिसमें ज़मीन पर विशेष किस्म की चित्रकारी करके नेगेटिव एनर्जी से घर परिवार को बचाने का उल्लेख मिलता है l

मुख्यतः इस कला पर महिलायों का ही अधिकार रहा हैl और माना जाता है कि ऐपण बनाते समय महिलाएं अवसर के अनुसार भगवान का सुमिरन कर आकृतियाँ बनाती हैं l जैसा अवसर वैसी ही आकृतियाँ l अलग-अलग शुभ और मंगलकार्यों, देवपूजन के लिए ऐपण के रूप भी बदलते जाते हैं। जिनमें से लक्ष्मी पीठ ऐपण, भद्र ऐपण, नवदुर्गा चौकी, शिव पीठ ऐपण, कन्यादान चौकी, लक्ष्मी आसन ऐपण, चामुंडा हस्त चौकी, जन्मदिन चौकी, सरस्वती चौकी, लक्ष्मी पग, वसोधरा ऐपण आदि शामिल हैं l
आधुनिकरण के दौर में ऐपण के मूल स्वरुप में बहुत परिवर्तन आया है l उत्तराखंड के स्थानीय लोग समय की कमी का हवाल देते हुए या फिर सहूलियत देखते हुए बाजारों में मिलने वाले प्रिंटेड ऐपण को अपने उत्सवों का हिस्सा बना रहें हैं या फिर जो इस लोक कला के लिए समय निकाल भी पा रहें हैं वो पेंट ब्रश का इस्तेमाल कर रहें हैं l ऐपण कपड़ों और कैनवास पर भी किया जाने लगा है l सिक्के के दो पहलुयों की तरह आज कई महिलायें उत्तराखंड की इस लोक कला को नए आयाम देने के प्रयास में लगी हुई हैं l जिस प्रकार दूसरे राज्यों की लोक कलाएं देश विदेश में पहचान बना चुकी हैं वो मुकाम ऐपण को नहीं मिला है l रूप- सवरूप में आधुनिकता का लिबाज़ ओढ़े ही सही, लेकिन ऐपण धीरे धीरे कला जगत में अपनी पहचान बना रही है l

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