श्रीलंका में हुए हालिया राष्ट्रपति और संसदीय चुनावों ने राजनीतिक परिदृश्य में बड़ा बदलाव ला दिया है। वामपंथी नेतृत्व वाले नेशनल पीपुल्स पावर (एनपीपी) गठबंधन की अप्रत्याशित और ऐतिहासिक जीत ने सत्ता संतुलन को पूरी तरह बदल दिया है, लेकिन वित्तीय संकट से जूझ रहे देश के लिए चुनावी वादों को पूरा करना नई सरकार के लिए आसान नहीं दिख रहा।
सितंबर में हुए राष्ट्रपति चुनाव में अनुरा कुमारा दिसानायके की ऐतिहासिक जीत के बाद, उनके नेतृत्व वाले एनपीपी गठबंधन ने संसद में भी शानदार प्रदर्शन करते हुए 225 सदस्यीय सदन में 159 सीटें हासिल कीं। यह दो-तिहाई बहुमत न सिर्फ देश के राजनीतिक इतिहास में अभूतपूर्व है, बल्कि इससे दिसानायके को व्यापक आर्थिक और संवैधानिक सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए स्पष्ट जनादेश मिला है।
उम्मीदें ऊँची, पर आर्थिक वास्तविकताएँ सख्त
नए साल के साथ जनता में उम्मीद जगी है कि यह श्रीलंका के लिए बदलाव का निर्णायक मोड़ साबित होगा। देश अब भी विनाशकारी आर्थिक मंदी और लंबे समय से चले आ रहे कुप्रबंधन से उबरने की कोशिश कर रहा है। मतदाताओं ने व्यवस्था परिवर्तन की उम्मीद में एनपीपी पर भरोसा जताया है, लेकिन सरकार के पास आर्थिक वादों को पूरा करने की सीमित गुंजाइश है क्योंकि प्रायः सभी प्रमुख निर्णय वित्तीय दबावों से बंधे हैं।
2022 में हुए गंभीर आर्थिक पतन के बाद श्रीलंका की आर्थिक सुधार प्रक्रिया बेहद नाजुक स्थिति में है। विशेषज्ञों के अनुसार, देश अभी भी संकट से पूरी तरह बाहर नहीं निकला है, और नीति-निर्माण में छोटी सी गलती भी परिस्थितियों को और खराब कर सकती है।





