उत्तराखंड के विश्वविख्यात धामों में शामिल श्री केदारनाथ मंदिर के कपाट विधि-विधान के साथ शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए हैं। भैयादूज के शुभ अवसर पर सुबह से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी और हर किसी की इच्छा थी कि कपाट बंद होने से पहले बाबा केदार के दर्शन कर पुण्य अर्जित किया जाए।
शीतकालीन अवकाश के दौरान बाबा केदार की पूजा और सभी धार्मिक अनुष्ठान उनकी पंचकेदार परंपरा के तहत उखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर में संपन्न होंगे। इसी मंदिर में भगवान शिव की शीतकालीन डोली ले जाई गई है, जिसके साथ मंत्रोच्चार और पारंपरिक वाद्ययंत्रों की गूंज ने पूरे क्षेत्र को आध्यात्मिक उल्लास से भर दिया।
कठोर हिमपात और प्रतिकूल मौसम के कारण उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र में शीतकाल में रहना असंभव होता है। ऐसी परिस्थितियों में आस्था और संवेदनशीलता को केंद्र में रखते हुए यह परंपरा सदियों पुरानी मानी जाती है कि छह माह बाबा केदारनाथ शीतनिद्रा में रहते हैं और शेष छह माह भक्तों को दर्शन देते हैं।
कपाट बंद होने की प्रक्रिया स्वयं में भव्य होती है। भगवान केदारनाथ के प्रमुख पुजारियों ने बाबा की पोशाक और अलंकरण उतारकर उन्हें समाधि रूप में विराजमान किया। इसके बाद शुभ मुहूर्त में डोली रावल और तीर्थ पुरोहितों के नेतृत्व में तीर्थयात्रा के साथ उखीमठ के लिए रवाना हुई। मार्ग में पड़ने वाले कई गांव इस यात्रा का स्वागत करते हैं, जिससे धार्मिक आस्था का अद्भुत संगम दिखाई देता है।
पौराणिक मान्यता है कि महाभारत युद्ध के पश्चात पांडवों ने अपने पापकर्मों का प्रायश्चित करने के लिए भगवान शिव की शरण ली थी। शिवजी उनसे रुष्ट होकर इसी हिमालयी क्षेत्र में विलीन हो गए थे। अंततः केदार के रूप में उन्होंने पांडवों को दर्शन दिए और उन्हें मोक्ष का मार्ग प्रशस्त किया।
इसी कथा से जुड़े पाँच स्थान — केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मध्यमाहेश्वर और कल्पेश्वर — पंचकेदार के रूप में पूजे जाते हैं।
अब अगले छह महीनों तक बाबा केदार उखीमठ में अपने भक्तों को दर्शन देंगे। वहीं, मंदिर नगरी केदारनाथ एक बार फिर शांति और बर्फ की चादर में ढककर प्रकृति की गोद में विश्राम करेगी। अप्रैल–मई में शुभ अक्षय तृतीया के आसपास कपाट खुलने की परंपरा है, जब फिर से केदारपुरी में श्रद्धा और उमंग की रौनक लौटेगी।




