भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम तीन नए आपराधिक कानून आज से लागू हो गए हैं। भारतीय न्याय संहिता कानून ने अब आईपीसी (इंडियन पीनल कोड) की जगह ले ली। ये तोनों विधेयक संसद के शीतकालीन सत्र में पारित किए गए थे। इस मसले पर कई कानूनी विशेषज्ञों ने अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि कानून लागू करने वाली एजेंसियों, न्यायिक अधिकारियों और कानूनी पेशेवरों के लिए आगे बड़ी चुनौतियां हैं। ऐसा कहा जाता है कि ये कानून किसी न किसी समय बड़ी संख्या में नागरिकों को प्रभावित करेंगे। पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री और कांग्रेस नेता अश्विनी कुमार ने एक इंटरव्यू में कहा, ‘जिस तरह से सरकार ने इन कानूनों को संसद में लाने के लिए जल्दबाजी की और जिस तरह से इसे लागू किया, वह लोकतंत्र में वांछनीय नहीं है। इन कानूनों पर न तो संसद समिति में पर्याप्त रूप से चर्चा की गई और न ही सदन में व्यापक रूप से चर्चा हुई, यहां तक कि हितधारकों के साथ कोई परामर्श भी नहीं किया गया।’
कुमार ने आगे कहा, ‘आपराधिक कानूनों के कानूनी ढांचे में बदलाव की मांग करने वाले विपक्षी दलों से पहले सभी हितधारकों के बीच सार्थक विचार-विमर्श होना चाहिए था, जोकि नहीं हुआ था। विपक्षी दलों की यह एकमात्र शिकायत है, जिसपर सत्तारूढ़ दल को बात रखनी चाहिए।’