विदेश मंत्री एस जयशंकर ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के कार्यान्वयन को सही ठहराते हुए कहा कि जो लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं, उन्हें भारतीय इतिहास की समझ नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार का उन लोगों के प्रति दायित्व है, जिन्हें विभाजन के समय निराश किया गया था। दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में शनिवार को विदेश मंत्री ने कहा, मैं उनके लोकतंत्र या उनके सिद्धांतों की खामियों पर सवाल नहीं उठा रहा हूं। मैं ऐसे लोगों को हमारे (भारत) इतिहास की उनकी समझ पर सवाल उठा रहा हूं। यदि आप दुनिया के कई हिस्सों से लगातार आ रही टिप्पणियों को सुनते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे भारत का विभाजन कभी हुआ ही नहीं। सीएए के जरिए इस तरह की समस्या को संबोधित करना ही नहीं चाहिए। विदेश मंत्री ने दृढ़ता से सीएए के कार्यान्वयन का बचाव किया और आलोचकों को अपनी नीतियों का पुनर्मूल्यांकन करने को कहा। जयशंकर ने कहा, दुनिया में ऐसे कई देश हैं जिन्होंने नागरिक संबंधी कानून बनाए हैं। उन्होंने कहा, मैं आपको कुछ उदाहरण से समझाना चाहूंगा। क्या आपने जैक्सन-वनिक संशोधन के बारे में सुना है, जो सोवियत संघ के यहूदियों के बारे में है, जिसके तहत अमेरिका में यहूदी को प्रवेश की अनुमति दी गई। आप खुद से ही सवाल करें कि सिर्फ यहूदी ही क्यों। इसके अलावा 1999 का लॉटेनबर्ग संशोधन भी इसका उदाहरण है, इसमें तीन देशों के अल्पसंख्यकों के एक समूह को शरणार्थी का दर्जा दिया गया और अंततः नागरिकता दी गई। इसमें ईसाई और यहूदी प्रमुख थे। इसके अलावा स्पेक्टर संशोधन भी इसी तरह का उदाहरण है।



 
                                    