वॉशिंगटन/नई दिल्ली। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन रूस पर आर्थिक दबाव और बढ़ाने की तैयारी में है। सरकार एक ऐसा नया कानून लाने जा रही है, जिसके तहत रूस के साथ व्यापार करने वाले देशों पर भी प्रतिबंध लगाए जा सकेंगे। ट्रंप की विदेश नीति टीम इसे “द्वितीयक प्रतिबंध” (Secondary Sanctions) का विस्तार बता रही है।
इस कदम का सबसे बड़ा असर उन देशों पर पड़ेगा जिनकी रूस के साथ रक्षा, ऊर्जा या कच्चे तेल के क्षेत्र में गहरी साझेदारी है—और इनमें भारत भी शामिल है।
सूत्रों के अनुसार यह कानून रूस पर पिछले महीनों से चल रहे अमेरिकी दबाव को और मजबूत करेगा। ट्रंप प्रशासन का मानना है कि रूस के साथ व्यापारिक संबंध रखने वाले देशों की वजह से मास्को पर लगाए गए प्रतिबंधों का प्रभाव कम हो जाता है।
नया कानून उन देशों पर आर्थिक और वाणिज्यिक प्रतिबंध लगाने का अधिकार देगा जो रूस के साथ बड़े पैमाने पर व्यापार जारी रखते हैं।
भारत और रूस के बीच तेल, रक्षा उपकरण, स्पेयर पार्ट्स और अंतरिक्ष सहयोग जैसे कई अहम क्षेत्र हैं। पिछले वर्षों में भारत द्वारा रूस से रियायती दर पर कच्चे तेल की खरीद भी काफी बढ़ी है।
अमेरिका के इस संभावित कानून का प्रभाव विशेष रूप से निम्न क्षेत्रों पर पड़ सकता है—
- कच्चे तेल की खरीद:भारत रूस से बड़े पैमाने पर तेल खरीदता रहा है। प्रतिबंध लागू होने पर भुगतान व्यवस्था, जहाजरानी और बीमा प्रभावित हो सकते हैं।
- रक्षा सौदे:रूस भारत का दशकों पुराना रक्षा साझेदार है। मिसाइल, पनडुब्बी, लड़ाकू विमानों के स्पेयर पार्ट्स पर निर्भरता अभी भी पर्याप्त है।
- व्यापारिक कंपनियां:दोनों देशों के बीच लेनदेन करने वाली भारतीय कंपनियों को अमेरिकी बैंकिंग चैनलों में कठिनाइयां झेलनी पड़ सकती हैं।
अमेरिकी अधिकारियों ने कहा है कि “विशेष परिस्थितियों में” करीबी साझेदार देशों को कुछ राहत दी जा सकती है, पर अपवाद बेहद सीमित होंगे। यह स्पष्ट संकेत है कि भारत को अपनी ऊर्जा और रक्षा रणनीति में संतुलन साधने की चुनौती और बढ़ेगी।
नई दिल्ली की ओर से आधिकारिक प्रतिक्रिया भले ही संयत रही, लेकिन विदेश मंत्रालय ने संकेत दिए कि भारत अपने राष्ट्रीय हित और रणनीतिक जरूरतों को देखते हुए ही किसी भी निर्णय पर आगे बढ़ेगा। भारत पहले भी अमेरिकी दबाव के बावजूद रूस से एस-400 मिसाइल प्रणाली खरीद चुका है।
विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप सरकार का यह कदम वैश्विक व्यापार समीकरणों में बड़ा बदलाव ला सकता है। यह चीन, भारत, तुर्की, ब्राजील और मध्य एशियाई देशों को सीधे प्रभावित करेगा, जो रूस के साथ व्यापारिक रिश्ते रखते हैं।
अमेरिका-रूस तनाव के बीच इस कानून को भू-रणनीतिक दबाव बढ़ाने की एक नई पहल माना जा रहा है।
आने वाले हफ्तों में कानून का ड्राफ्ट सार्वजनिक होने की उम्मीद है। इसके बाद भारत सहित कई देशों की कूटनीतिक सक्रियता तेज हो सकती है।





