ब्रिटेन ने रूस और चीन की ओर से बढ़ते साइबर हमलों और सूचना युद्ध अभियान पर कड़ा रुख अपनाते हुए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। लंदन ने उन संगठनों और कंपनियों पर सीधा प्रतिबंध लगाया है, जिन पर आरोप है कि वे दुष्प्रचार फैलाने, संवेदनशील डेटा चुराने और ब्रिटेन के लोकतांत्रिक ढांचे को प्रभावित करने के प्रयासों में सक्रिय रूप से शामिल थे। सरकार का कहना है कि यह कार्रवाई राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने और साइबर क्षेत्र में विदेशी हस्तक्षेप को रोकने के लिए आवश्यक है।
ब्रिटिश विदेश मंत्रालय द्वारा जारी बयान के अनुसार, रूस और चीन से जुड़े कई समूह लंबे समय से ‘सूचना युद्ध’ के तहत फेक न्यूज, झूठे नैरेटिव और जनमत को प्रभावित करने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर रहे थे। ब्रिटेन की खुफिया एजेंसियों ने इन संगठनों को देश की राजनीतिक प्रणाली, चुनाव प्रक्रिया और प्रमुख सरकारी संस्थानों के लिए गंभीर खतरा बताया है। इस संदर्भ में सरकार ने उनके वित्तीय लेन-देन, तकनीकी गतिविधियों और यूके-आधारित नेटवर्क तक पहुंच को भी प्रतिबंधित कर दिया है।
रिपोर्टों के मुताबिक, साइबर जासूसी और ऑनलाइन प्रोपेगेंडा में संलग्न पाए गए इन संगठनों के खिलाफ कार्रवाई कई महीनों से चल रही जांच पर आधारित है। ब्रिटिश अधिकारियों का कहना है कि रूस समर्थित हैकर समूह और चीन की सरकारी संबद्ध कंपनियाँ लगातार यूके की संवेदनशील प्रणालियों में सेंध लगाने की कोशिश कर रही थीं। इससे न सिर्फ सरकारी संस्थान, बल्कि रक्षा, ऊर्जा और वित्तीय क्षेत्र से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियाँ भी खतरे में पड़ सकती थीं।
विशेषज्ञों का मानना है कि ब्रिटेन का यह कदम अन्य यूरोपीय देशों के लिए भी एक संदेश है, जो इसी तरह की सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। साइबर सुरक्षा विश्लेषकों के अनुसार, यह कार्रवाई पश्चिमी देशों के बीच बढ़ती सामूहिक चिंता को दर्शाती है कि रूस और चीन तकनीकी माध्यमों का इस्तेमाल कर वैश्विक शक्ति संतुलन को प्रभावित करने की रणनीति अपना रहे हैं।
सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि भविष्य में किसी भी विदेशी इकाई द्वारा गलत सूचना फैलाने या डिजिटल हस्तक्षेप के प्रयास पाए जाने पर और कड़े कदम उठाए जाएंगे। इसके लिए ब्रिटेन ने साइबर सुरक्षा और डिजिटल इंटेलिजेंस तंत्र को और मजबूत करने की दिशा में कई योजनाओं की भी घोषणा की है।
ब्रिटेन की इस कार्रवाई के बाद रूस और चीन दोनों से प्रतिक्रिया की उम्मीद है। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम ब्रिटेन की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति का हिस्सा है, जिसके तहत वह अपने डिजिटल क्षेत्र को सुरक्षित रखने और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को बाहरी हस्तक्षेप से बचाने के लिए प्रतिबद्ध है।





