नई दिल्ली। भारत का रियल एस्टेट सेक्टर अब महानगरों की सीमाओं से बाहर निकलकर छोटे शहरों (टियर-2 और टियर-3) में नई रफ्तार पकड़ रहा है। बाजार विशेषज्ञों और हालिया आर्थिक रिपोर्टों के अनुसार, बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर और कंपनियों द्वारा अपनाए जा रहे ‘डीसेंट्रलाइज्ड वर्क मॉडल’ (विकेंद्रीकृत कार्य मॉडल) के कारण आने वाले वर्षों में इन शहरों में आवासीय और व्यावसायिक संपत्तियों की मांग में भारी उछाल आने की संभावना है।
मांग बढ़ने के प्रमुख कारण
- विकेंद्रीकृत वर्क मॉडल: कोरोना काल के बाद से कई बड़ी कंपनियों ने अपने ऑफिसों को छोटे शहरों की ओर शिफ्ट करना शुरू कर दिया है। ‘हाइब्रिड’ और ‘रिमोट वर्किंग’ की वजह से अब पेशेवर अपने गृह नगरों में रहकर काम करना पसंद कर रहे हैं, जिससे वहां घरों की मांग बढ़ी है।
- बेहतर कनेक्टिविटी: सरकार की ‘उड़ान’ योजना और नए एक्सप्रेसवे के निर्माण ने लखनऊ, इंदौर, चंडीगढ़ और जयपुर जैसे शहरों को महानगरों से जोड़ दिया है। बेहतर सड़क और हवाई कनेक्टिविटी ने रियल एस्टेट डेवलपर्स को इन शहरों में बड़े प्रोजेक्ट्स लाने के लिए प्रोत्साहित किया है।
- किफायती विकल्प: मुंबई या दिल्ली जैसे महानगरों की तुलना में टियर-2 और 3 शहरों में रियल एस्टेट की कीमतें काफी कम हैं। यहाँ कम बजट में भी आधुनिक सुविधाओं (जैसे जिम, पार्क, क्लब हाउस) वाले आलीशान फ्लैट और प्लॉट उपलब्ध हैं।
निवेशकों के लिए फायदे का सौदा
बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि इन शहरों में संपत्तियों के दाम अभी स्थिर हैं, लेकिन मांग बढ़ने के साथ ही यहाँ ‘कैपिटल एप्रिसिएशन’ (कीमतों में वृद्धि) की दर महानगरों के मुकाबले अधिक रहने की उम्मीद है। छोटे शहरों में कम लागत और बेहतर ‘रेंटल यील्ड’ (किराये से होने वाली आय) के कारण निवेशक अब यहां ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे हैं।
बदलती जीवनशैली
छोटे शहरों में अब केवल साधारण घर नहीं, बल्कि ‘गेटेड कम्युनिटी’ और ‘स्मार्ट टाउनशिप’ का चलन बढ़ा है। लोग अब खुली जगह, प्रदूषण मुक्त वातावरण और आधुनिक सुविधाओं की तलाश में इन शहरों को प्राथमिकता दे रहे हैं। इससे न केवल आवासीय, बल्कि रिटेल और ऑफिस स्पेस सेक्टर में भी भारी निवेश आ रहा है।





