नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण पर्यटन नगरी रानीखेत में उड़न गिलहरी (इंडियन जाइंट फ्लाइंग स्क्वायरल) नजर आई है। यह पहला मौका है जब यहां प्रकृति प्रेमियों को उड़न गिलहरी के दीदार हुए। सिर्फ रात में नजर आने वाला यह नन्हा प्राणी विलुप्ति के कगार पर है। तभी इसे वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की ”अनुसूची-2” में रखा गया है। यह रहस्यमय एवं दुर्लभ जीव भले ही गिलहरी की शक्ल का हो लेकिन सामान्य गिलहरी से अलग होता है। जो पेड़ों के बीच ”ग्लाइड” करता है लेकिनउड़ता नहीं। मुख्य रूप से फल, बीज, फूल, कोमल पत्तियां और कीट-पतंगे इसका आहार हैं। यह प्राणी साल में एक बार संतानोत्पत्ति करता है और एक बार में इसके 1 से 3 बच्चे जन्म लेते हैं। इस दुर्लभ जीव की तस्वीर प्रसिद्ध नेचर फोटोग्राफर कमल गोस्वामी ने रानीखेत में अपने कमरे से ली। विलुप्त के कगार पर खड़े इस जीव का दिखना शुभ भी माना जा रहा है। उड़न गिलहरी जो फल खाती है, उनके बीज फैला कर नए पौधों की उत्पत्ति में मदद करती है। यह छोटे कीटों को खाती है और खुद उल्लू, सांप, या जंगली बिल्लियों का शिकार भी बन जाती है। इस प्रकार यह पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में योगदान देती है। खास बात यह है कि इसका नाम उड़न गिलहरी अवश्य है लेकिन यह उड़ती नहीं है। सिर्फ पेड़ों के बीच ग्लाइडिंग करती है। गर्दन से पूंछ तक फैली पतली झिल्ली इसकी सबसे खास पहचान है। इसकी मदद से यह पेड़ों के बीच लंबी दूरी तय कर लेती है। इसका शरीर 30–45 सेमी लंबा होता है और इसकी फूली हुई पूंछ 40–50 सेमी तक लंबी होती है। वजन लगभग 1.5 से दो किलोग्राम तक हो सकता है।