लखनऊ। रोजगार आज की दुनिया की सबसे बड़ी चुनौती है। भारत में अनुमानित सवा करोड़ लोग संविदा या आउटसोर्सिंग व्यवस्था के तहत काम कर रहे हैं। लेकिन यह व्यवस्था अक्सर अस्थायी कर्मचारियों के लिए असुरक्षा और शोषण का कारण बनती रही है। नियमित वेतन, अवकाश और सामाजिक सुरक्षा जैसे मूलभूत अधिकारों को लेकर राज्यों में कोई समान नीति न होने से ये कर्मचारी कम वेतन और अनिश्चित भविष्य से जूझते रहे हैं।
ऐसे में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए “उत्तर प्रदेश आउटसोर्स सेवा निगम लिमिटेड” का गठन किया है। कंपनीज एक्ट-2013 के सेक्शन-8 के तहत गठित यह गैर-लाभकारी पब्लिक लिमिटेड कंपनी राज्य में आउटसोर्सिंग भर्ती प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने के साथ-साथ अस्थायी कर्मचारियों के हितों की रक्षा करने का दावा करती है।
क्या बदलेगा सिस्टम?
अब तक सरकारी विभाग अपनी जरूरत के लिए एजेंसियों का चयन मनमाने ढंग से करते थे। नई व्यवस्था में यह प्रक्रिया जेईएम पोर्टल के माध्यम से होगी। निगम की निगरानी में एजेंसियों का चयन होगा ताकि कर्मचारियों को शोषण से बचाया जा सके।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, प्रदेश के 93 विभागों में करीब 11 लाख कर्मचारी आउटसोर्सिंग एजेंसियों के जरिए कार्यरत हैं। इन कर्मचारियों को अक्सर वेतन की विसंगतियों और नौकरी की असुरक्षा का सामना करना पड़ता है।
देशभर का परिदृश्य
एक अध्ययन (2014) के अनुसार, केंद्र और राज्य स्तर पर कुल सरकारी कार्यबल का 43 प्रतिशत यानी करीब 1.23 करोड़ कर्मचारी अस्थायी हैं। विशेषज्ञों का अनुमान है कि यह संख्या 2024-25 के अंत तक बढ़कर डेढ़ से दो करोड़ तक पहुंच सकती है, खासकर स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे के क्षेत्रों में।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की रिपोर्ट 2024 भी बताती है कि संगठित क्षेत्र में संविदा नियुक्तियों का चलन तेजी से बढ़ रहा है।
अस्थायी कर्मचारियों की समस्याएं
आउटसोर्सिंग मॉडल का मूल उद्देश्य सरकारी विभागों का प्रशासनिक बोझ घटाना और भर्ती प्रक्रिया को तेज करना था। लेकिन हकीकत यह रही कि एजेंसियां कम लागत पर कर्मचारियों की भर्ती करती हैं और अनुबंध पूरा होने पर उन्हें बाहर कर देती हैं या नये अनुबंध पर रख लेती हैं।
इससे कर्मचारियों को वेतन रोकने, अनुचित छंटनी और सामाजिक सुरक्षा की कमी जैसी समस्याओं से जूझना पड़ता है।
योगी सरकार का दावा
सरकार का कहना है कि नया निगम कर्मचारियों के लिए कई महत्वपूर्ण बदलाव लाएगा:
- नियमित मानदेय और सीधे बैंक खाते में वेतन हस्तांतरण।
- ईपीएफ और ईएसआई का गारंटीकृत अंशदान।
- मातृत्व अवकाश और अंतिम संस्कार सहायता जैसी सुविधाएं।
- नियुक्ति की न्यूनतम अवधि तीन वर्ष।
- वेतन भुगतान हर महीने 1 से 5 तारीख के बीच अनिवार्य।
क्या मिलेगा स्थायित्व?
विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि यह व्यवस्था प्रभावी रूप से लागू होती है तो लाखों अस्थायी कर्मचारियों के जीवन में बड़ा बदलाव आएगा। वेतन और सामाजिक सुरक्षा को लेकर उनकी चिंताएं काफी हद तक दूर हो सकती हैं।
हालांकि, सवाल यह भी है कि क्या निगम कर्मचारियों के वास्तविक स्थायित्व और कैरियर प्रगति की गारंटी देगा या यह केवल मौजूदा आउटसोर्स व्यवस्था को थोड़ा व्यवस्थित करने तक सीमित रहेगा।
यदि सरकार इस नए मॉडल के जरिए अस्थायी कर्मचारियों के शोषण को रोकने और उनके हितों को सुरक्षित करने में सफल होती है, तो यह पहल देशभर में रोजगार प्रबंधन के लिए एक आदर्श मॉडल बन सकती है।





