यूनेस्को ने अपनी अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में भारत की दो महत्वपूर्ण परंपराओं को शामिल किया है। इस सूची में तंगेल साड़ी बुनाई कला और पारंपरिक बोरींडों वाद्ययंत्र को आधिकारिक तौर पर जगह मिली है। यह घोषणा यूनेस्को की चल रही बैठक के दूसरे दिन की गई, जिसमें विभिन्न देशों की सांस्कृतिक परंपराओं को अंतरराष्ट्रीय मान्यता देने पर विचार किया जा रहा है।
तंगेल साड़ी बुनाई एक अत्यंत सूक्ष्म और विशिष्ट कला है, जिसकी शुरूआत पूर्वोत्तर भारत के पारंपरिक ताना-बाना से हुई मानी जाती है। इसकी खासियत बुनाई की बारीक तकनीक और प्राकृतिक रंगों के प्रयोग में देखी जाती है। इस कला को सूची में शामिल किए जाने से न सिर्फ कारीगरों को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलेगी, बल्कि पारंपरिक हस्तशिल्प उद्योग को भी नई ऊर्जा प्राप्त होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यूनेस्को की स्वीकृति से इस कला के संरक्षण, प्रचार और बाजार विस्तार में महत्वपूर्ण मदद मिलेगी।
दूसरी ओर, बोरींडों वाद्ययंत्र को भी विरासत सूची में शामिल किए जाने से संगीत परंपरा के संरक्षण को बल मिलेगा। यह वाद्ययंत्र अपनी अनोखी ध्वनि और पारंपरिक तकनीक के लिए जाना जाता है। जनजातीय समुदायों में पीढ़ियों से प्रयोग हो रहा बोरींडों अब वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त कर चुका है। इससे न केवल इस वाद्ययंत्र के कलाकारों को नई पहचान मिलेगी, बल्कि इससे जुड़े सांस्कृतिक आयोजनों को भी प्रोत्साहन मिलेगा।
यूनेस्को की ओर से जारी बयान में कहा गया कि भारत की विविध सांस्कृतिक परंपराएँ वैश्विक विरासत को समृद्ध बनाती हैं। तंगेल बुनाई और बोरींडों वाद्ययंत्र को सूची में शामिल करने का उद्देश्य इन परंपराओं को दस्तावेज़बद्ध कर भावी पीढ़ियों तक सुरक्षित पहुँचाना है।
भारतीय सांस्कृतिक संस्थानों और विशेषज्ञों ने इस उपलब्धि का स्वागत करते हुए कहा कि इससे स्थानीय कलाकारों के लिए नए अवसर खुलेंगे। सरकार ने भी यूनेस्को के फैसले को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि यह भारत की सांस्कृतिक समृद्धि और परंपरागत ज्ञान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने वाला कदम है।





