कीव/मास्को: रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध ने एक बार फिर आक्रामक मोड़ ले लिया है। यूक्रेन ने अपनी सैन्य रणनीति बदलते हुए अब रूस के आर्थिक बुनियादी ढांचे को सीधे तौर पर निशाना बनाना शुरू कर दिया है। ताजा घटनाक्रम में, यूक्रेनी सेना ने रूस के अंदर स्थित महत्वपूर्ण तेल डिपो और प्राकृतिक गैस संयंत्रों पर मिसाइलों और लंबी दूरी के आत्मघाती ड्रोन से भीषण हमले किए हैं।
प्रमुख ऊर्जा ठिकानों पर प्रहार
यूक्रेनी रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, यह हमला रूस के सीमावर्ती क्षेत्रों के साथ-साथ रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्रों पर किया गया है। रिपोर्टों के मुताबिक, हमलों के कारण कई रूसी रिफाइनरियों और गैस भंडारण केंद्रों में भीषण आग लग गई, जिसे बुझाने में रूसी दमकल कर्मियों को काफी मशक्कत करनी पड़ी। इन हमलों का मुख्य उद्देश्य रूस की सैन्य रसद (Logistics) और उसके राजस्व के सबसे बड़े स्रोत—ऊर्जा निर्यात—को चोट पहुँचाना है।
मिसाइल और ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल
यूक्रेनी सेना ने इस ऑपरेशन में स्वदेशी ‘पल्यानित्स्या’ (Palyanytsya) ड्रोन मिसाइलों और पश्चिमी देशों से प्राप्त लंबी दूरी की मिसाइलों का तालमेल बिठाया। सैन्य विशेषज्ञों का कहना है कि यूक्रेन अब सीधे रूस के उन संसाधनों को नष्ट कर रहा है जो रूसी युद्ध मशीनरी को ईंधन और पैसा उपलब्ध कराते हैं। कई वीडियो में रूसी आसमान में ड्रोनों की गूंज और धमाकों के बाद उठते काले धुएं के गुबार देखे गए हैं।
रूस की प्रतिक्रिया और नुकसान
दूसरी ओर, रूसी रक्षा मंत्रालय ने दावा किया है कि उनकी वायु रक्षा प्रणालियों (Air Defense Systems) ने अधिकांश यूक्रेनी ड्रोनों और मिसाइलों को बीच हवा में ही मार गिराया। हालांकि, मास्को ने स्वीकार किया कि कुछ संयंत्रों के मलबे से मामूली आग लगी और संपत्ति को नुकसान पहुँचा है। रूस ने इन हमलों को ‘आतंकवादी कृत्य’ करार देते हुए यूक्रेन को गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी है।
युद्ध की नई दिशा
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यूक्रेन के ये हमले रूस की अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने की एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा हैं। ठंड के मौसम की शुरुआत से पहले ऊर्जा ठिकानों पर हमलों से रूस के भीतर ईंधन की आपूर्ति प्रभावित हो सकती है, जिससे आम जनता और सैन्य अभियान दोनों पर दबाव बढ़ेगा।
इस बड़े हमले के बाद दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर पहुँच गया है और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को युद्ध के और अधिक विस्तार होने की आशंका सताने लगी है।





