इस्लामाबाद/वाशिंगटन: पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर इस वक्त अपने करियर के सबसे कठिन कूटनीतिक संकट का सामना कर रहे हैं। नवनिर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान पर गाजा (Gaza) में अपनी सेना भेजने के लिए भारी दबाव बनाना शुरू कर दिया है। ट्रंप का मानना है कि गाजा में शांति व्यवस्था बहाल करने के लिए एक मुस्लिम देश की सेना का होना अनिवार्य है, लेकिन पाकिस्तान के लिए यह कदम ‘आग से खेलने’ जैसा साबित हो सकता है।
डोनाल्ड ट्रंप की मांग और पाकिस्तान की दुविधा
- ट्रंप की रणनीति: डोनाल्ड ट्रंप गाजा संघर्ष में अमेरिकी सैनिकों को सीधे शामिल करने के बजाय क्षेत्रीय शक्तियों और सहयोगी देशों (जैसे पाकिस्तान) का उपयोग करना चाहते हैं। उनका प्रस्ताव है कि पाकिस्तानी सेना गाजा में ‘पीसकीपिंग फोर्स’ के रूप में तैनात हो।
- आर्थिक दबाव: बदहाल अर्थव्यवस्था से जूझ रहे पाकिस्तान के लिए अमेरिका की बात टालना मुश्किल है, क्योंकि उसे वैश्विक वित्तीय संस्थाओं (IMF) और अमेरिकी मदद की सख्त जरूरत है।
- घरेलू आक्रोश का डर: यदि जनरल मुनीर सेना भेजने का फैसला लेते हैं, तो पाकिस्तान के भीतर तीव्र जनाक्रोश भड़क सकता है। पाकिस्तानी अवाम और धार्मिक संगठन फिलिस्तीन के मुद्दे पर बेहद संवेदनशील हैं और वे सेना को अमेरिकी हितों के लिए इस्तेमाल होते नहीं देखना चाहते।
अंतरराष्ट्रीय और कूटनीतिक मायने
- इजरायल का रुख: पाकिस्तान और इजरायल के बीच कोई राजनयिक संबंध नहीं हैं। ऐसे में इजरायली सीमा के पास पाकिस्तानी सेना की मौजूदगी एक जटिल सुरक्षा संकट पैदा कर सकती है।
- चीन और तुर्की की नजर: पाकिस्तान के करीबी सहयोगी चीन और तुर्की इस घटनाक्रम पर पैनी नजर रखे हुए हैं। वे नहीं चाहेंगे कि पाकिस्तान पूरी तरह से अमेरिकी खेमे में जाकर मध्य-पूर्व की राजनीति में उलझे।
- अरब देशों की भूमिका: सऊदी अरब और यूएई जैसे देश भी गाजा के भविष्य को लेकर अपनी योजनाएं बना रहे हैं, जिससे पाकिस्तान की राह और मुश्किल हो गई है।
मुनीर का अगला कदम क्या होगा?
जनरल असीम मुनीर के लिए यह स्थिति ‘अग्निपरीक्षा’ से कम नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान सीधे तौर पर सेना भेजने के बजाय ‘मानवीय सहायता’ या ‘चिकित्सा टीम’ भेजने का मध्य मार्ग चुन सकता है। हालांकि, ट्रंप की कार्यशैली को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि वे किसी छोटे समझौते पर मानेंगे या नहीं।





