मुंबई की सड़कों पर 15 जुलाई से टैक्सी और बाइक टैक्सी सेवाएं अचानक थम गई हैं। ओला, उबर और रैपिडो से जुड़े हजारों ड्राइवर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए हैं। एयरपोर्ट, बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स, अंधेरी और साउथ मुंबई जैसे मुख्य इलाकों में सेवाएं पूरी तरह ठप हैं। इस हड़ताल से दैनिक यात्रियों और पर्यटकों को भारी परेशानी हो रही है।
हड़ताल की मुख्य वजहें
1. न्यायसंगत किराए की मांग:
ड्राइवरों का कहना है कि प्लेटफॉर्म द्वारा तय किया गया किराया 8 से 12 रुपये प्रति किलोमीटर तक ही रह जाता है, जबकि काली-पीली टैक्सियों का न्यूनतम किराया कहीं ज्यादा है।
2. ईंधन और रखरखाव खर्च में बढ़ोतरी:
पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने से ड्राइवरों की बचत शून्य हो गई है, और काम करना अब घाटे का सौदा लगने लगा है।
3. प्लेटफॉर्म छूट का बोझ ड्राइवरों पर:
ऐप कंपनियां यात्रियों को छूट देती हैं, लेकिन उसका खर्च ड्राइवरों की कमाई से काट लिया जाता है, जिससे उन्हें गहरी नाराजगी है।
4. स्पष्ट सरकारी नीति का अभाव:
राज्य सरकार ने एक साल पहले एग्रीगेटर नीति की घोषणा की थी, लेकिन अब तक कोई औपचारिक गाइडलाइन जारी नहीं की गई है। इससे अनिश्चितता और भ्रम की स्थिति बनी हुई है।
5. बाइक टैक्सियों पर प्रतिबंध की मांग:
ड्राइवर यूनियनों का कहना है कि बाइक टैक्सियों से अनुचित प्रतिस्पर्धा बढ़ी है और उन्हें बंद किया जाना चाहिए।
ड्राइवरों की मुख्य मांगें
• ऐप-आधारित टैक्सियों के किराए को काली-पीली टैक्सी के बराबर लाया जाए।
• सभी श्रमिकों के लिए कल्याण बोर्ड का गठन हो, जिससे उन्हें सामाजिक सुरक्षा मिले।
• छूट देने की लागत प्लेटफॉर्म खुद वहन करे, न कि ड्राइवरों की कमाई से।
• एग्रीगेटर नीति में किराया संरचना, लाइसेंसिंग और प्रवर्तन को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए जाएं।
सरकारी नीति का क्या है हाल?
महाराष्ट्र सरकार ने एक साल पहले ऐप-आधारित कैब सेवाओं पर नीति लाने का एलान किया था। एक मसौदा नीति तैयार हो चुकी है, लेकिन अब तक उसे लागू नहीं किया गया है। यही देरी अब आंदोलन की बड़ी वजह बन गई है।
असर और आगे की राह
• यात्रियों को लंबा इंतजार, अधिक किराया और सार्वजनिक परिवहन पर निर्भरता बढ़ी।
• ड्राइवरों का कहना है कि जब तक मांगें नहीं मानी जातीं, तब तक वे हड़ताल खत्म नहीं करेंगे।
• सरकार के लिए यह नीतिगत परीक्षण बनता जा रहा है — क्या वह तेजी से समाधान निकाल सकेगी?