राजधानी दिल्ली में सोमवार सुबह आए भूकंप से उत्तर भारत के कई इलाकों की धरती कांप गई। भूकंप के झटके इतने तेज महसूस किए गए कि लोग अपने-अपने घरों से बाहर निकल गए और लोगों में दहशत का माहौल देखा गया। रिक्टर स्केल पर इस भूकंप की तीव्रता 4.0 रही और इस भूकंप का केंद्र दिल्ली के धौला कुआं इलाके में जमीन के पांच किलोमीटर भीतर था। चूंकि भूकंप का केंद्र दिल्ली में ही था और जमीन के बहुत अंदर नहीं था तो इसकी वजह से भूकंप के तेज झटके महसूस हुए और कई लोगों ने बताया कि उन्हें ऐसा लगा जैसे जमीन के अंदर ट्रेन चल रही है। दिल्ली भूकंप के लिहाज से बेहद संवेदनशील है और यह सिस्मिक जोन-4 के अंतर्गत आती है। इस जोन के इलाकों में भूकंप का खतरा ज्यादा रहता है। दिल्ली आपदा प्रबंधन अधिकरण के अनुसार, इस जोन में तेज भूकंप आने का खतरा रहता है और इन भूकंपों की तीव्रता 5-6 मैग्नीट्यूड हो सकती है। वहीं कुछ भूकंप 7-8 मैग्नीट्यूड तीव्रता के भी हो सकते हैं। साल 1720 से दिल्ली में कम से कम पांच भूकंप आए हैं, जिनकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 5.5 रही। इससे पहले साल 2020 में भी दिल्ली में भूकंप के झटके महसूस किए गए थे। हालांकि उनकी तीव्रता 3 ही थी। धरती की क्रस्ट की सबसे बाहरी परत बड़े और कठोर पत्थरों के स्लैब से बनी होती है, जिन्हें टेक्टोनिक प्लेट्स कहा जाता है। करीब सात बड़ी और छोटी टेक्टोनिक प्लेट्स होती हैं, ये प्लेट्स बेहद धीमी गति से हिलती हैं, जिसकी वजह से ही भूकंप आते हैं। उत्तर भारत में, जहां हिमालय पर्वत भी आते हैं, यहां भारतीय टेक्टोनिक प्लेट का यूरेशियन प्लेट से टकराव होता रहता है, जिसकी कंपन से ही भूकंप आते हैं। इन टेक्टोनिक प्लेट के टकराने से बड़ी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है, जो भूकंप का कारण बनती है।
भूकंपीय क्षेत्र IV में होने के अलावा, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) द्वारा किए गए विश्लेषण में पाया गया है कि राष्ट्रीय राजधानी में भूकंप रोधी इमारतों की संख्या बेहद कम है, साथ ही यहां जनसंख्या घनत्व भी काफी ज्यादा है और भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों के कारण और अनियोजित विकास के चलते दिल्ली में भूकंप का खतरा बड़ा है। दिल्ली में अगर तेज तीव्रता का भूकंप आता है तो वह भारी तबाही मचा सकता है।