ब्रिटेन में गुरुवार को भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर के काफिले पर खालिस्तान समर्थकों ने हमले की कोशिश की। दरअसल, जयशंकर लंदन के चैथम हाउस में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचे थे। बाहर खालिस्तान समर्थक बड़ी संख्या में जुट गए। जब जयशंकर बाहर निकले, उस दौरान उपद्रवियों ने उनके काफिले के सामने प्रदर्शन किया। इसी मौके पर प्रदर्शनकारियों के समूह में से एक व्यक्ति सुरक्षा घेरा तोड़ता हुआ जयशंकर की कार के पास पहुंच गया और उन्हें घेरने की कोशिश करने लगा। इतना ही नहीं खालिस्तान समर्थकों ने उनकी कार को भी रोकने की कोशिश की। इस पूरी घटना को लेकर ब्रिटेन में भी आवाजें उठी हैं। कंजर्वेटिव पार्टी के सांसद बॉब ब्लैकमैन ने ब्रिटिश संसद के निचले सदन हाउस ऑफ कॉमन्स में इस मुद्दे को उठाया और घटना को खालिस्तानी गुंडों की ओर से किया हमला करार दिया। दूसरी तरफ भारत की तरफ से भी ब्रिटेन में खालिस्तानी चरमपंथ के बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंता जाहिर की गई।ब्रिटेन के 2021 तक की जनगणना के मुताबिक, वहां अभी करीब 5.25 लाख सिख बसे हैं। इस लिहाज से ब्रिटेन की जनसंख्या में सिखों का आंकड़ा करीब 1 फीसदी है। यानी ब्रिटेन में सिख चौथा सबसे बड़ा धार्मिक समूह हैं।
ब्रिटेन में सिखों की मौजूदगी 19वीं सदी के मध्य से है, हालांकि तब इस धर्म के लोगों की आबादी दूसरे धर्मों के मुकाबले काफी कम थी। यह स्थिति दूसरे विश्व युद्ध के बाद से बदलना शुरू हुई, जब ब्रिटेन में कामगारों की कमी की वजह से बड़ी संख्या में सिख समुदाय को भारत से ब्रिटेन में बसने का मौका दिया गया। इतना ही नहीं 1947 में भारत और पाकिस्तान के बंटवारे का दंश झेलने वाले कई सिख परिवारों ने ब्रिटेन को अपना नया घर बनाने का फैसला किया।
मौजूदा समय में ब्रिटेन में सिख आबादी ब्रिटेन के बर्मिंघम और ग्रेटर लंदन जैसे क्षेत्रों में बसी है। इन्हीं शहरों में छोटे-छोटे स्तर पर खालिस्तान समर्थकों के धड़े मौजूद हैं, जिनकी तरफ से समय-समय पर आवाज उठाई जाती रही है। विभाजन के दंश के बाद भारत और पाकिस्तान में पहुंचे कुछ सिखों ने अपने लिए अलग देश की मांग की। खासकर पाकिस्तान में इस्लामिक शासन के बीच देश छोड़ने के लिए मजबूर होने वाले सिखों ने इसकी मांग जोर-शोर से उठाई। अविभाजित भारत में यह मांग छोटे स्तर पर 1930-40 के दौर में उठी। हालांकि, बाद में लंबे समय तक माहौल शांतिपूर्ण रहा।
1960 के दौर में पंजाब में एक बार फिर अलग खालिस्तान की मांग उठी। दरअसल, इस दौर में खालिस्तान के लिए सबसे बड़ी आवाज माने जाने वाले एक नेता जगजीत सिंह चौहान का उदय हुआ। डेंटिस्ट से नेता बने जगजीत चौहान ने पहले एक अलग स्वायत्त सिख राज्य बनाने की मांग रखी। उनकी इन मांगों का पंजाब में कई कट्टरंपथी समूहों ने समर्थन भी किया। हालांकि, उनका यह अभियान भारत में तेजी से बढ़ने में असफल रहा।