नई दिल्ली / ब्रसेल्स। भारत और यूरोपीय संघ (European Union) के बीच आज से एक महत्वपूर्ण द्विपक्षीय बैठक की शुरुआत हो रही है। इस बैठक का मुख्य उद्देश्य लंबे समय से लंबित मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreement – FTA) को नई दिशा और राजनीतिक गति देना है।
भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल 27–28 अक्टूबर को ब्रसेल्स में यूरोपीय संघ के ट्रेड कमिश्नर मारोस शेफकोविक (Maros Sefcovic) से मुलाकात करेंगे। दोनों पक्षों के बीच बातचीत का यह चरण इसलिए भी अहम माना जा रहा है क्योंकि पिछले महीने संपन्न हुई 14वीं वार्ता के बाद अब दोनों देश इस समझौते को जल्द निष्कर्ष तक पहुंचाने के पक्ष में हैं।
मुख्य मुद्दे और एजेंडा
बैठक में बाजार पहुँच, गैर-शुल्क बाधाएँ (Non-Tariff Measures), नियम-समन्वय (Regulatory Cooperation), निवेश सुरक्षा और भौगोलिक संकेतों (Geographical Indications) जैसे विषयों पर चर्चा होगी। भारत इस समझौते में अपने तैयार वस्त्र, फार्मा, स्टील और इलेक्ट्रिकल मशीनरी उद्योगों को बढ़ावा देने के अवसर देख रहा है, जबकि यूरोपीय संघ चाहता है कि भारत ऑटोमोबाइल, मेडिकल डिवाइसेज़, शराब और कृषि उत्पादों के लिए अपना बाजार अधिक खोलें।
आर्थिक पृष्ठभूमि
वित्त वर्ष 2024–25 में भारत–ईयू व्यापार का कुल आयतन 136.53 अरब अमेरिकी डॉलर रहा, जिसमें भारतीय निर्यात 75.85 अरब डॉलर और आयात 60.68 अरब डॉलर का रहा। यूरोपीय संघ भारत का सबसे बड़ा वस्तु व्यापार भागीदार है, और इस कारण दोनों पक्ष इस FTA को केवल आर्थिक नहीं, बल्कि रणनीतिक साझेदारी के रूप में देख रहे हैं—विशेषकर वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला, स्थिरता, प्रौद्योगिकी सहयोग और नियम-आधारित व्यापार प्रणाली के दृष्टिकोण से।
चुनौतियाँ और आगे की राह
हालांकि दोनों पक्ष वर्ष 2025 के अंत तक समझौते को अंतिम रूप देने का लक्ष्य रखते हैं, परंतु चुनौतियाँ कम नहीं हैं। भारत ने स्पष्ट किया है कि वह किसी भी स्थिति में “जल्दबाज़ी में समझौता नहीं करेगा” और अपने किसानों, घरेलू उद्योगों और संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा को प्राथमिकता देगा। दूसरी ओर, यूरोपीय संघ चाहता है कि भारत ऑटो और कृषि उत्पादों पर टैरिफ में कमी लाए, जो अब तक सबसे बड़ा अवरोध बना हुआ है।
इसके अलावा, डेटा सुरक्षा, पर्यावरण मानक और श्रम कानूनों से जुड़े नियमों पर भी दोनों पक्षों के विचार पूरी तरह मेल नहीं खाते। वैश्विक परिप्रेक्ष्य में जहाँ अमेरिका, चीन और रूस के साथ भू-राजनीतिक तनाव बढ़ रहे हैं, ऐसे में भारत–ईयू व्यापार समझौते को अंतिम रूप देना एक राजनयिक और आर्थिक चुनौती दोनों है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह बैठक भारत–ईयू संबंधों में एक नया अध्याय खोल सकती है। यदि दोनों पक्ष लचीलापन दिखाते हैं, तो यह समझौता न केवल द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाएगा बल्कि वैश्विक व्यापार व्यवस्था में भी एक संतुलित और टिकाऊ मॉडल प्रस्तुत कर सकता है।




