अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन से आयातित वस्तुओं पर नई टैरिफ दरें लागू करने के लिए 90 दिन का समय दिया है, जबकि भारत से आने वाले उत्पादों पर 25% टैरिफ लागू हो चुका है। समझौता न होने की सूरत में आगामी 27 अगस्त से भारत पर 50 फीसदी टैरिफ तत्काल प्रभाव से लागू हो जाएगा, जो पूरी दुनिया में सबसे अधिक होगा। अमेरिकी मीडिया और रणनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार यह कदम केवल आर्थिक नहीं बल्कि राजनीतिक और कूटनीतिक संतुलन साधने की कोशिश हैं। अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कार्यालय (यूएसटीआर) के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार चीन के साथ व्यापार वार्ताएं अंतिम चरण में हैं और 90 दिन का समय दोनों पक्षों को आपसी समझौते तक पहुंचने के लिए दिया गया है। अमेरिका चाहता है कि चीन बौद्धिक संपदा, तकनीकी हस्तांतरण और कृषि आयात में रियायतें दे। इसका अर्थ यह है कि ट्रंप प्रशासन चीन से डील की संभावना खुली रखना चाहता है ताकि टकराव की बजाय रियायतों के बदले राजनीतिक लाभ लिया जा सके। द वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के साथ अमेरिकी व्यापार घाटा चीन जितना बड़ा नहीं है, लेकिन ट्रंप प्रशासन इसे कम राजनीतिक जोखिम वाला कदम मानता है। भारत पर टैरिफ लागू करने से अमेरिकी उद्योगों को संदेश जाएगा कि प्रशासन संरक्षणवाद के प्रति गंभीर है, जबकि चीन के साथ सौदेबाजी के लिए समय बचा रहेगा।
उपभोक्ताओं को सस्ते विकल्प के रूप में चीनी वस्तुओं की पेशकश
विशेषज्ञों के अनुसार भारत के पास चीन जितनी आक्रामक जवाबी क्षमता नहीं है और उसकी अमेरिकी बाजार पर निर्भरता अधिक है इसलिए तत्काल टैरिफ लागू करना आसान था। कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस की वरिष्ठ शोधकर्ता मिलानी वर्मा इस धारणा को आंशिक रूप से सही मानती हैं। उनका कहना है कि ट्रंप प्रशासन का लक्ष्य है कि अमेरिकी उपभोक्ता सस्ते विकल्प के तौर पर चीनी वस्तुएं लेते रहें, जब तक घरेलू उत्पादन बढ़ न जाए।
चीन को समय, रणनीतिक संदेश
बुकिंग्स इंस्टिट्यूशन के अर्थशास्त्री एडवर्ड एल्डेन के अनुसार भारत पर तत्काल टैरिफ और चीन को समय देना, अमेरिका का ‘ड्यूल ट्रैक’ है। एक तरफ चीन से रियायतें लेना, दूसरी तरफ भारत पर कड़ा संदेश भेजना कि अमेरिकी बाजार तक पहुंच अब राजनीतिक सौदेबाजों पर निर्भर करेगी। यह रणनीति अमेरिका के एशिया-प्रशांत आर्थिक समीकरण में भी असर डाल सकती है, जहां भारत पहले से ही एक बड़ी ताकत है।