Friday, November 14, 2025

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भारत–तिब्बत व्यापार का ऐतिहासिक गवाह गौचर मेला: 1943 में हुई थी शुरुआत, अब ‘नमो मंत्र’ से मिलेगी राष्ट्रीय पहचान

गौचर (चमोली)। उत्तराखंड का प्रसिद्ध गौचर मेला न केवल सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है, बल्कि भारत–तिब्बत व्यापार के स्वर्णिम इतिहास का जीवंत साक्ष्य भी है। वर्ष 1943 में शुरू हुआ यह मेला आज भी अपनी परंपरा, व्यापारिक महत्ता और सामाजिक जुड़ाव के कारण पूरे प्रदेश में विशेष स्थान रखता है। अब सरकार इसे राष्ट्रीय पहचान दिलाने की दिशा में कदम बढ़ा रही है, जिससे मेला पर्यटन और व्यापार दोनों क्षेत्रों में नई ऊंचाइयों तक पहुंच सकेगा।

तिब्बत व्यापार का प्रमुख केंद्र रहा गौचर

स्वतंत्रता से कई वर्ष पहले तक गौचर मैदान देश–विदेश के व्यापारियों का मिलन स्थल माना जाता था। भारत–तिब्बत व्यापार के स्वर्ण युग में यह क्षेत्र भेड़–बकरी के ऊन, जड़ी–बूटियों और तिब्बती वस्तुओं के बड़े लेनदेन का प्रमुख केंद्र था। ऊंचे हिमालयी मार्गों से होकर आने वाले व्यापारी यहां अनेक दिनों तक डेरा डालते थे। मेले के समय गौचर पूरा व्यावसायिक नगर बन जाता था और व्यापारिक गतिविधियां देर रात तक चलती थीं।

1943 से अब तकसांस्कृतिक और आर्थिक विरासत

गौचर मेला वर्ष 1943 में औपचारिक तौर पर शुरू किया गया था। शुरू में यह मेला व्यापारियों और स्थानीय किसानों के लिए बाजार का बड़ा माध्यम था, लेकिन समय के साथ यह एक सांस्कृतिक और सामाजिक पर्व के रूप में विकसित हुआ। आज यहां हस्तशिल्प, कृषि उपकरण, स्थानीय उत्पाद, पारंपरिक व्यंजन, लोक कला, खेलकूद और आधुनिक तकनीक से जुड़ी प्रदर्शनियों की अलग ही छटा देखने को मिलती है।

प्रशासनिक स्तर पर भी मेला स्थानीय अर्थव्यवस्था को बड़ा समर्थन देता है। हजारों की संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं, जिससे पर्यटन और व्यापार दोनों को गति मिलती है।

अब ‘नमो मंत्रसे बनेगी राष्ट्रीय पहचान

वर्तमान में केंद्र और राज्य सरकारें स्थानीय संस्कृति और पारंपरिक आयोजनों को राष्ट्रीय मंच देने की दिशा में काम कर रही हैं। ‘नमो मंत्र’—यानी स्थानीय को वैश्विक पहचान दिलाने के मिशन—के तहत गौचर मेले को भी राष्ट्रीय स्तर पर ब्रांडिंग की योजना तैयार की जा रही है।

सरकारी सूत्रों के अनुसार, मेले में “वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट”, स्थानीय उत्पादों की ई–मार्केटिंग, पर्यटन प्रोत्साहन और सांस्कृतिक विरासत को राष्ट्रीय मंच से जोड़ने जैसे कार्यक्रम प्रस्तावित हैं। इससे मेला केवल क्षेत्रीय आयोजन न रहकर राष्ट्रीय महत्व का सांस्कृतिक–आर्थिक उत्सव बन सकेगा।

स्थानीयों में उत्साह, समर्थन की उम्मीद

गौचर मेला पहले ही उत्तराखंड की पहचान बन चुका है, लेकिन राष्ट्रीय दर्जा मिलने से इसके दायरे के और बढ़ने की उम्मीद है। स्थानीय व्यापारी और किसान इसे अपने लिए बड़ा अवसर मान रहे हैं। उनका कहना है कि यदि केंद्र और राज्य स्तर से विशेष प्रमोशन मिलता है, तो यह मेला पूरे देश से पर्यटकों और खरीदारों को आकर्षित कर सकेगा।

कुल मिलाकर, गौचर मेला अपनी ऐतिहासिक विरासत, सामुदायिक जुड़ाव और आर्थिक संभावनाओं के साथ एक बार फिर नई दिशा में आगे बढ़ने को तैयार है—इस बार राष्ट्रीय पहचान के साथ।

 

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