नागपुर/नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने एक बार फिर भारत की सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत मूल रूप से एक ‘हिंदू राष्ट्र’ है और इस शाश्वत सत्य को सिद्ध करने के लिए किसी भी प्रकार के संवैधानिक प्रमाण या औपचारिक घोषणा की आवश्यकता नहीं है।
“हिंदुत्व ही हमारी राष्ट्रीयता”
एक सार्वजनिक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि ‘हिंदू’ शब्द केवल एक धर्म या पूजा पद्धति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह इस भूमि की संस्कृति और मूल्यों का प्रतीक है।
- सांस्कृतिक पहचान: उन्होंने तर्क दिया कि जिस प्रकार इंग्लैंड एक अंग्रेज राष्ट्र है और जर्मनी एक जर्मन राष्ट्र है, उसी प्रकार भारत एक हिंदू राष्ट्र है।
- समावेशी विचारधारा: भागवत ने स्पष्ट किया कि जो कोई भी भारत की संस्कृति का सम्मान करता है और खुद को इस मिट्टी से जुड़ा हुआ मानता है, वह हिंदू है, चाहे उसकी व्यक्तिगत उपासना पद्धति कुछ भी हो।
संवैधानिक चर्चा पर रुख
संविधान में ‘हिंदू राष्ट्र’ शब्द के उल्लेख न होने पर उन्होंने कहा कि संविधान देश के प्रशासन और व्यवस्था को चलाने का दस्तावेज है, लेकिन राष्ट्र की अंतरात्मा और उसकी पहचान सदियों पुरानी सांस्कृतिक विरासत से तय होती है।
- प्रामाणिकता की आवश्यकता नहीं: उनके अनुसार, भारत की पहचान उसके इतिहास और पूर्वजों से जुड़ी है, जिसके लिए बाहरी प्रमाण की दरकार नहीं है।
- विविधता में एकता: उन्होंने कहा कि हिंदू राष्ट्र का अर्थ यह नहीं है कि यहाँ अन्य मतों के लिए जगह नहीं है; बल्कि हिंदू विचार ही सबको साथ लेकर चलने की शक्ति प्रदान करता है।
सामाजिक एकजुटता का आह्वान
सरसंघचालक ने स्वयंसेवकों और समाज के विभिन्न वर्गों से एकजुट होने का आह्वान किया।
- अखंडता पर जोर: उन्होंने कहा कि जब हम कहते हैं कि भारत हिंदू राष्ट्र है, तो इसका उद्देश्य किसी को अलग करना नहीं, बल्कि सबको राष्ट्रीयता के एक सूत्र में पिरोना है।
- वैश्विक पटल पर भारत: उन्होंने विश्वास जताया कि हिंदू मूल्यों के आधार पर ही भारत विश्व गुरु बनने की राह पर अग्रसर हो सकता है।
“भारत को हिंदू राष्ट्र कहने का अर्थ किसी विशेष पूजा पद्धति का थोपना नहीं है। यह एक वास्तविकता है जिसे हमें स्वीकार करना चाहिए। हमारी विविधता ही हमारी शक्ति है और हिंदुत्व ही वह तत्व है जो इस विविधता को एकता में बदलता है।” — डॉ. मोहन भागवत, सरसंघचालक (RSS)
राजनीतिक हलकों में चर्चा
मोहन भागवत के इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में बहस तेज हो गई है। जहाँ दक्षिणपंथी विचारधारा के लोग इसे राष्ट्र की वास्तविक पहचान बता रहे हैं, वहीं विपक्षी दलों ने इसे संविधान की धर्मनिरपेक्ष (Secular) भावना के विपरीत बताया है।





