Wednesday, March 12, 2025

Top 5 This Week

Related Posts

भाजपा के सत्ता में आते ही ओडिशा ने अपनाया आयुष्मान

देश में आयुष्मान भारत योजना के लागू होने के करीब छह साल बाद तक ओडिशा, दिल्ली और पश्चिम बंगाल में इसे लेकर विरोध रहा, लेकिन ओडिशा में भाजपा की सरकार आते ही राज्य ने इसे हरी झंडी दे दी है।सोमवार को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में केंद्र और ओडिशा सरकार के बीच प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (आयुष्मान भारत) को लेकर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर होंगे। केंद्र सरकार की ओर से राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (एनएचए) इस योजना के लिए राज्य सरकार के साथ एमओयू साइन करेगा। दरअसल, फरवरी 2018 में केंद्र सरकार ने आम बजट में देश के 50 करोड़ से ज्यादा लोगों को पांच लाख रुपये तक का सालाना स्वास्थ्य बीमा देने की घोषणा की, जिसके बाद सितंबर 2018 में आयुष्मान भारत योजना को लॉन्च किया गया। कुछ ही महीनों में इसको 33 राज्यों तक पहुंचने में केंद्र कामयाब रहा, लेकिन इसे पूरी तरह से राष्ट्रीय पहचान दिलाने में सफल नहीं हो पाया, क्योंकि दिल्ली, पश्चिम बंगाल और ओडिशा ने इसे ठुकरा दिया। तब से लेकर अब तक कई प्रयासों और बैठकों का सिलसिला होने के बाद भी लाभार्थी राज्य की सूची में नया नाम नहीं जुड़ पाया। अब 34वां राज्य इसमें शामिल होने जा रहा है।एनएचए से मिली जानकारी के मुताबिक, लोगों को आयुष्मान भारत योजना का लाभ दिलाने के लिए हाल ही में ओडिशा सरकार ने अपने बजट में इसे शामिल करते हुए कुल 5,450 करोड़ रुपये खर्च करने की घोषणा की। राज्य में एक करोड़ परिवारों के 3.5 करोड़ सदस्यों को इस योजना का लाभ मिलेगा। इसका दूसरा मतलब यह भी है कि अब ओडिशा के लोग इस योजना के जरिये देश के किसी भी हिस्से में रहकर पंजीकृत अस्पताल में इलाज ले सकेंगे, क्योंकि इस योजना के तहत पंजीकृत अस्पतालों की संख्या 30 हजार है। इतना ही नहीं, ओडिशा में आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन भी लागू हो जाएगा, जिसके तहत राज्य के लोगों को भारत डिजिटल स्वास्थ्य खाता (आभा) आईडी मिलेगी। इसका इस्तेमाल देश में कहीं भी अपने मेडिकल रिकॉर्ड की जानकारी प्राप्त करने में कर सकेंगे।

केंद्र के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि जून 2018 में योजना को लेकर राज्यों के साथ जानकारियां साझा करना शुरू हुआ। सितंबर 2018 में योजना को लॉन्च करने के बाद जनवरी 2019 से बैठकें भी शुरू हुईं। लगभग सभी राज्यों को मनाने में कामयाब रहे, जिनमें से कई शर्तों को भी पूरा किया गया, जबकि कुछ जगह अहम बदलाव भी करने पड़े, लेकिन जब भी दिल्ली, पश्चिम बंगाल या ओडिशा के साथ बातचीत होती तो यहां के अधिकारियों की हर बार एक नई शर्त सामने आती थी। कई बार ऐसा भी हुआ कि उनके तर्क साफ तौर पर सियासी समझे जा सकते थे, जिन्हें लेकर उन्हें बार-बार समझाया भी गया, लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली।

 

Popular Articles