रियो डी जनेरियो। ब्राज़ील के सबसे बड़े शहरों में से एक रियो डी जनेरियो में मंगलवार को पुलिस और सैन्य बलों द्वारा चलाए गए एक बड़े एंटी-नारकोटिक ऑपरेशन ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इस अभियान में अब तक कम-से-कम 64 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है।
यह छापेमारी रियो के कुख्यात Comando Vermelho (रेड कमांडो) गिरोह के ठिकानों पर की गई थी, जो लंबे समय से ड्रग तस्करी और हिंसक अपराधों के लिए जिम्मेदार माना जाता है।
अभियान का स्वरूप और कार्रवाई का विस्तार
यह ऑपरेशन मंगलवार सुबह तड़के शुरू हुआ और रियो के उत्तर-पूर्वी हिस्से की Complexo do Alemão और Complexo da Penha जैसी भीड़भाड़ वाली फवेलाओं (झुग्गी बस्तियों) में केंद्रित रहा।
करीब 2,500 पुलिसकर्मी और सैनिक इस अभियान में शामिल थे, जिन्होंने कई घंटों तक चली गोलीबारी के बीच गिरोह के गढ़ों में प्रवेश किया।
अधिकारियों ने बताया कि कार्रवाई के दौरान 81 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया और भारी मात्रा में हथियार, नशीले पदार्थ और अवैध संपत्ति बरामद की गई।
पुलिस का कहना है कि गिरोह के सदस्यों ने सशस्त्र प्रतिरोध किया — उन्होंने बसों और सड़कों को अवरुद्ध किया, वाहनों में आग लगाई, और सुरक्षा बलों की प्रगति को रोकने की कोशिश की।
राज्यपाल क्लाउडियो कास्त्रो (Cláudio Castro) ने इस कार्रवाई का बचाव करते हुए कहा कि यह अब केवल “अपराध नियंत्रण” नहीं बल्कि “नार्को-टेररिज्म के खिलाफ लड़ाई” है।
मानवाधिकार संगठनों और संयुक्त राष्ट्र की प्रतिक्रिया
इस कार्रवाई की तीव्रता और उच्च मृत्यु संख्या ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता पैदा कर दी है।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय (UNHCHR) ने इस घटना पर गहरी नाराज़गी जताई है और कहा है कि सभी मौतों की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की जानी चाहिए।
यूएन प्रवक्ता ने कहा, “ब्राज़ील में बार-बार इस तरह की हिंसक कार्रवाइयाँ मानवाधिकार सिद्धांतों के विरुद्ध हैं।”
रियो के कई नागरिक समूहों और सामाजिक संगठनों ने भी इस अभियान की आलोचना की है।
उनका कहना है कि यह राज्य द्वारा गरीब और अश्वेत आबादी के खिलाफ चलाई जा रही नीति का हिस्सा है, और इसे एक तरह का “संरचित नरसंहार” कहा जा सकता है।
स्थानीय संगठनों का तर्क है कि इस प्रकार की “शक्ति-प्रधान” पुलिस कार्रवाई से ड्रग समस्या का स्थायी समाधान संभव नहीं है, क्योंकि इन गिरोहों की जड़ें गहरी सामाजिक असमानता और बेरोज़गारी में हैं।
प्रशासनिक चुनौतियाँ और भविष्य की दिशा
ब्राज़ील की सरकार और सुरक्षा एजेंसियों के सामने अब दोहरी चुनौती है —
एक ओर, उन्हें संगठित अपराध और ड्रग नेटवर्क पर सख्त कार्रवाई जारी रखनी है,
दूसरी ओर, उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि इन कार्रवाइयों के दौरान मानवाधिकार और नागरिक सुरक्षा मानकों का उल्लंघन न हो।
राज्य प्रशासन अब यह भी विचार कर रहा है कि फवेलाओं में पुनर्वास, रोजगार और शिक्षा से जुड़ी योजनाओं को कैसे तेज़ किया जाए ताकि लोग अपराध के रास्ते से दूर रहें।
नीतिगत विशेषज्ञों का कहना है कि ब्राज़ील की सुरक्षा रणनीति को केवल “सैन्यकृत” दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सामाजिक सुधार और पुनर्वास केंद्रित दृष्टिकोण से भी देखा जाना चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय छवि पर असर
इस घटना के बाद ब्राज़ील पर मानवाधिकार अनुपालन को लेकर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ गया है।
कई विदेशी पर्यवेक्षकों ने सवाल उठाया है कि क्या इस तरह की कार्रवाइयाँ ब्राज़ील की लोकतांत्रिक संस्थाओं और न्यायिक पारदर्शिता के अनुरूप हैं।
अंतरराष्ट्रीय एजेंसियाँ इस बात पर ज़ोर दे रही हैं कि भविष्य में ऐसे अभियानों को कानूनी निगरानी और पारदर्शिता के तहत संचालित किया जाए।
निष्कर्ष
रियो डी जनेरियो में हुआ यह अभियान ब्राज़ील की आंतरिक सुरक्षा रणनीति का सबसे बड़ा प्रदर्शन माना जा रहा है, लेकिन इसके परिणामों ने सुरक्षा और मानवाधिकार के बीच संतुलन पर नई बहस छेड़ दी है।
एक ओर सरकार इसे “नार्को-टेररिज्म के खिलाफ निर्णायक प्रहार” बता रही है, तो दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसे “मानवाधिकार उल्लंघन और राज्य-संवेदनशीलता की विफलता” के रूप में देख रहा है।
अब देखना यह होगा कि क्या ब्राज़ील इस कार्रवाई को न्यायोचित ठहरा पाता है या यह उसके लिए वैश्विक आलोचना का विषय बनकर उभरता है।
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