बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राजनीतिक टकराव और तेज हो गया है। कांग्रेस ने जहां इस फैसले को “बिहार के मतदाताओं को वंचित होने से बचाने वाला” बताया, वहीं भाजपा ने कांग्रेस पर सुप्रीम कोर्ट की बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने का आरोप लगाया है।
कांग्रेस का दावा: वोटरों के अधिकारों की जीत
कांग्रेस के संचार प्रमुख जयराम रमेश ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को साझा करते हुए लिखा:
“चुनाव आयोग अब मतदाता पहचान पत्र (EPIC), आधार कार्ड और राशन कार्ड को मान्य दस्तावेज मानेगा। इससे लाखों लोगों को वोटर लिस्ट से बाहर होने से बचाया जा सकेगा।”
रमेश ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी भी याचिकाकर्ता ने आयोग की प्रक्रिया पर रोक की मांग नहीं की थी।
उन्होंने चुनाव आयोग पर निशाना साधते हुए कहा:
“गुमराह करने वाली हेडलाइन बनाना किसी संवैधानिक संस्था को शोभा नहीं देता।”
भाजपा का पलटवार: सुप्रीम कोर्ट को गलत तरीके से पेश न करें
भाजपा आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने जयराम रमेश पर तीखा हमला करते हुए लिखा:
“कोर्ट ने कोई अतिरिक्त दस्तावेज मान्य करने का आदेश नहीं दिया है। सिर्फ यह कहा है कि आयोग चाहे तो विचार कर सकता है।”
मालवीय ने आगे कहा कि कोर्ट की टिप्पणियों को गलत तरह से पेश करना खतरनाक हो सकता है और अवमानना का कारण भी बन सकता है। उन्होंने राहुल गांधी का उदाहरण देते हुए कहा,
“ऐसा ही काम राहुल गांधी ने किया था और उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ी थी।”
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण के दौरान आधार, EPIC और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों पर विचार किया जा सकता है, बशर्ते चुनाव आयोग उचित कारण बताए।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि
“चुनाव आयोग के पास यह अधिकार है कि वह किसी दस्तावेज को अस्वीकार कर सकता है, लेकिन उसके पीछे तर्क होना चाहिए।”