नई दिल्ली/कोलकाता। बिहार में विशेष निवेश क्षेत्र (SIR) नीति अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाई, जिसके चलते अब राजनीतिक हलकों में यह चर्चा तेज है कि क्या यही मुद्दा अब पश्चिम बंगाल की राजनीति में केंद्र बिंदु बनेगा। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस मुद्दे को लेकर किस दिशा में कदम बढ़ाती हैं, यह राज्य की राजनीति की दशा और दिशा तय कर सकता है।
दरअसल, केंद्र सरकार की ओर से औद्योगिक निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए लाई गई SIR नीति को बिहार में लागू किया गया था। लेकिन स्थानीय स्तर पर न तो उद्योगों का अपेक्षित विकास हुआ और न ही रोजगार सृजन की गति तेज हो सकी। परिणामस्वरूप विपक्ष ने इसे “असफल प्रयोग” करार दिया। अब यही मुद्दा पश्चिम बंगाल में नई बहस का कारण बन रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ममता बनर्जी की सरकार, जो पहले से ही औद्योगिक निवेश को लेकर केंद्र के साथ कई बार मतभेद जता चुकी है, SIR मॉडल को अपनाने में सतर्कता बरतेगी। तृणमूल कांग्रेस के सूत्रों के अनुसार, राज्य सरकार किसी भी ऐसे प्रोजेक्ट को मंजूरी देने से पहले उसकी स्थानीय उपयोगिता और किसानों पर प्रभाव का गहन अध्ययन करना चाहती है।
दूसरी ओर, बीजेपी नेताओं का कहना है कि SIR जैसी योजनाएं यदि सही ढंग से लागू की जाएं तो पश्चिम बंगाल में औद्योगिक विकास को नई दिशा मिल सकती है। पार्टी ने संकेत दिया है कि आने वाले चुनावों में औद्योगिक निवेश और रोजगार सृजन उनके मुख्य एजेंडे में शामिल रहेंगे।
इधर, वाम दलों और कांग्रेस ने भी ममता सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि राज्य में उद्योगों के पलायन और बेरोजगारी के मुद्दे को अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। वे SIR जैसे मॉडल को “राजनीतिक अवसरवाद” बताते हुए स्थायी समाधान की मांग कर रहे हैं।
मौजूदा परिदृश्य में ममता बनर्जी के तेवर निर्णायक माने जा रहे हैं। अगर वह इस योजना को स्वीकार करती हैं, तो यह केंद्र-राज्य संबंधों में नया मोड़ ला सकता है। वहीं, विरोध की स्थिति में औद्योगिक विकास को लेकर बंगाल की राजनीति और गरमाने की पूरी संभावना है।





