Wednesday, July 30, 2025

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बिहार चुनाव: मुद्दों की धार और नेताओं के तेज की असली परीक्षा

बिहार की राजनीति इस समय तीखे मुद्दों और रणनीतिक समीकरणों की धधकती भट्टी में तप रही है। ऑपरेशन सिंदूर की गूंज अभी शांत नहीं हुई है और अब मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (SIR) को लेकर उठा विवाद राजनीतिक भूचाल में बदलता जा रहा है। जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, राज्य की राजनीति मुद्दों की ध्रुवीकरण और भावनात्मक अभियानों की तरफ बढ़ रही है।
मतदाता सूची पुनरीक्षण को लेकर जहां विपक्ष सड़क से सुप्रीम कोर्ट तक विरोध दर्ज करा चुका है, वहीं चुनाव आयोग इस विशेष अभियान को पारदर्शी और संवैधानिक प्रक्रिया बता रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने भी आयोग की प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार करते हुए उसे आधार, राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र जैसे दस्तावेजों को अनिवार्य दस्तावेजों की सूची में शामिल करने की सलाह दी है।
अब जबकि आयोग 25 जुलाई तक फार्म जमा करने का काम पूरा करेगा और सुप्रीम कोर्ट इस पर 28 जुलाई को अगली सुनवाई करेगा, दोनों ही पक्ष इस स्थिति को अपनी-अपनी वैचारिक जीत के रूप में प्रस्तुत करने में जुट गए हैं।
जनता की अदालत में तय होगा सच

बिहार चुनाव इस बार सिर्फ सत्ता के लिए संघर्ष नहीं, बल्कि मुद्दों की धार और नेताओं की परख का भी अखाड़ा बनेगा।
ऑपरेशन सिंदूर, जिसमें भारतीय वायुसेना ने पहलगाम हमले के जवाब में पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर प्रहार किया, और उसके बाद घोषित संघर्षविराम — यह सारा घटनाक्रम भी अब चुनावी विमर्श का हिस्सा बन गया है।
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा घटना के ठीक बाद बिहार की पहली जनसभा में दिया गया यह संदेश — “दुनिया के किसी भी कोने में छिपे दोषियों को छोड़ा नहीं जाएगा” — सत्ता पक्ष की ओर से इस अभियान को राष्ट्रीय संकल्प के रूप में पेश करेगा। वहीं, विपक्ष इसे ट्रंप के बयानों और अंतरराष्ट्रीय दबाव से जोड़कर सरकार की विदेश नीति की कमजोरी बताएगा।
SIR: फर्जी मतदाता बनाम लोकतांत्रिक अधिकार

मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण का मुद्दा भी दोधारी तलवार बन चुका है।
• अगर आयोग की प्रक्रिया पूर्णतः अमल में आती है, तो जिन लोगों के नाम हटेंगे, उन्हें लेकर विपक्ष भावनात्मक अपील और वंचना का मुद्दा उठाएगा।
• वहीं अगर पुनरीक्षण में खामियां दिखीं, तो विपक्ष इसे अपनी “जनहित में जीत” कहकर भुनाएगा।
• सत्तारूढ़ एनडीए इस अभियान को मतदाता शुद्धीकरण और फर्जीवाड़ा उन्मूलन की दिशा में एक निर्णायक कदम बताएगा।
सुप्रीम कोर्ट की सलाह के अनुसार, यदि आयोग आधार, राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र को शामिल करता है, तो दो करोड़ लोगों के नाम हटने का विपक्षी दावा कमजोर पड़ सकता है। लेकिन अगर यह सुझाव नहीं माना गया, तो विपक्ष इसे लोकतंत्र की अनदेखी और न्यायालय की अवहेलना बताकर जोरशोर से प्रचारित करेगा।
परिणाम ही बताएंगे जनता का मूड
बिहार चुनाव में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि मतदाता राष्ट्रवाद, पारदर्शिता और लोकतांत्रिक अधिकारों के बीच किस मुद्दे को प्राथमिकता देता है।
क्या ऑपरेशन सिंदूर की राष्ट्रभावना भारी पड़ेगी या मतदाता सूची में छेड़छाड़ का आरोप असर दिखाएगा?
क्या मतदाता जागरूकता अभियान एनडीए के पक्ष में लहर बनाएगा या विपक्ष उसे जनविरोधी योजना कहकर अपनी ज़मीन मजबूत करेगा?
एक बात तय है — इस बार का बिहार चुनाव केवल सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि राजनीतिक विमर्श की दिशा तय करने वाला साबित हो सकता है।

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