Sunday, December 28, 2025

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बांग्लादेश सीमा के खाली हिस्से पर कांटेदार बाड़ लगाने में देरी क्यों? ममता सरकार पर कलकत्ता हाईकोर्ट सख्त

पश्चिम बंगाल सरकार पर कलकत्ता हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामले में कड़ी नाराजगी व्यक्त की है, क्योंकि राज्य सरकार बांग्लादेश सीमा के उन हिस्सों पर कांटेदार बाड़ लगाने में देरी कर रही है, जहाँ अब तक बाड़ नहीं लग पाई है। यह मामला राज्य की अंतरराष्ट्रीय सीमा की सुरक्षा और नियंत्रण से जुड़ा है, जिसे लेकर उच्च न्यायालय ने सरकार से विस्तृत जवाब मांगा है।

कलकत्ता हाईकोर्ट की खंडपीठ ने गुरुवार को आदेश दिया कि बंगाल सरकार 22 दिसंबर तक एक हलफनामा दायर करे जिसमें यह स्पष्ट किया जाए कि बिना बाड़ वाली सीमा वाले खाली हिस्सों पर कांटेदार बाड़ लगाने के लिए आवश्यक जमीन केंद्र के गृह मंत्रालय को क्यों नहीं सौंपी गई, जबकि गृह मंत्रालय ने भूमि अधिग्रहण की पूरी लागत का भुगतान भी कर दिया है। न्यायालय ने कहा है कि यदि सरकार के हलफनामे पर आपत्ति उठती है तो केंद्र सरकार को भी अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाएगा। 

कोर्ट ने इसके अलावा पश्चिम बंगाल भूमि एवं भूमि सुधार विभाग के प्रधान सचिव को भी इस मामले में पक्षकार बनाया है और कहा है कि राज्य को तैयार रहना चाहिए कि भूमि न सौंपे जाने के कारण बाड़बंदी में देरी कैसे और क्यों हो रही है, इसकी स्पष्ट व्याख्या प्रस्तुत की जाए। बांग्लादेश के साथ पश्चिम बंगाल की सीमा पर भूमि अधिग्रहण का मुद्दा लंबे समय से विवाद का विषय रहा है, जिसमें सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) और केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को असहयोग का आरोप लगाया है।

राजनीतिक गलियारे में भी इस विषय को लेकर तीखी आलोचना जारी है। भाजपा ने राज्य सरकार और सत्तादल तृणमूल कांग्रेस पर आरोप लगाया है कि वे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े गंभीर मुद्दों की अनदेखी कर रहे हैं। वहीं विरोधियों का कहना है कि भूमि न सौंपे जाने से सीमा पर बाड़बंदी का काम बाधित हो रहा है और इससे सुरक्षा चुनौतियाँ विकराल हो सकती हैं।

इससे पहले केंद्रीय गृहमंत्री ने भी संसद में बयान दिया था कि लगभग 450 किलोमीटर सीमा पर बाड़बंदी का काम लंबित है क्योंकि बंगाल सरकार भूमि उपलब्ध नहीं करा रही है और कई बार बैठकें होने के बावजूद भी बाड़ लगाने की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाई है।

हाईकोर्ट का यह सख्त रुख ऐसे समय में आया है जब सीमा सुरक्षा, अवैध घुसपैठ, तस्करी और सुरक्षा बलों के बीच समन्वय जैसे मुद्दों पर पहले से ही राजनीतिक और कानूनी बहसें तेज हैं। राज्य सरकार को अब अदालत द्वारा तय समयसीमा के भीतर स्पष्ट जवाब देना आवश्यक है, ताकि आगे की कानूनी प्रक्रिया जारी रखी जा सके।

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