विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने वैश्विक परिदृश्य में प्रतिभा और कौशल के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि जो देश मानव संसाधन पर रोक या प्रतिबंध लगाते हैं, वे भविष्य में आर्थिक और तकनीकी दोनों स्तरों पर पीछे रह जाएंगे। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि दुनिया आज जिस दिशा में आगे बढ़ रही है, उसमें प्रतिभा का प्रवाह रोकने वाले राष्ट्र घाटे में रहेंगे और अपने ही विकास को सीमित कर लेंगे।
जयशंकर एक अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम में बोल रहे थे, जहां उन्होंने वैश्विक प्रतिभा के आदान–प्रदान और कौशल आधारित अर्थव्यवस्था के भविष्य पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि 21वीं सदी ज्ञान, नवाचार और कौशल की सदी है और ऐसे समय में प्रतिभा को सीमित करना किसी भी देश के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। उनकी मानें तो भविष्य की सफल अर्थव्यवस्थाएं वे होंगी, जो न केवल प्रतिभा को आकर्षित करेंगी बल्कि उसे विकसित करने के अवसर भी उपलब्ध कराएंगी।
उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि भारत आज दुनिया की सबसे युवा प्रतिभा संपन्न आबादी वाले देशों में से एक है, और यह देश के लिए अवसरों का विशाल द्वार खोलता है। भारत का लक्ष्य न केवल अपनी प्रतिभा को वैश्विक स्तर पर स्थापित करना है, बल्कि अन्य देशों से विशेषज्ञता और नवाचार को भी अपनाना है, ताकि विकास का चक्र और अधिक मजबूत हो सके।
विदेश मंत्री ने वैश्विक सहयोग की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए कहा कि किसी एक देश के लिए यह संभव नहीं कि वह अकेले सभी क्षेत्रों में अग्रणी बने। प्रतिभा, तकनीक और विचारों का मुक्त आदान–प्रदान ही विश्व को आगे ले जाने का मार्ग है। उन्होंने चेतावनी दी कि जो देश इन आदान–प्रदानों पर कृत्रिम प्रतिबंध लगाएंगे, उन्हें लंबे समय में नुकसान झेलना पड़ेगा और वे वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाएंगे।
कुल मिलाकर, जयशंकर का यह बयान तेजी से बदलते वैश्विक आर्थिक और तकनीकी माहौल को समझने की दिशा में एक स्पष्ट संदेश देता है—कि प्रतिभा को रोकना प्रगति को रोकना है, और खुलापन ही भविष्य की सफलता की कुंजी है।





