नए चुने गए पोप लियो XIV के नाम चयन ने दुनिया भर में एक खास संदेश दिया है, ये दावा इटली के सियावोन शहर से आई रिपोर्ट में किया गया है। वहीं इसे लेकर मैनहैटन यूनिवर्सिटी में धार्मिक अध्ययन विभाग की प्रमुख, नतालिया इम्पराटोरी-ली ने कहा, ‘जब एक अमेरिकी को पोप चुना गया, तो हम सब थोड़ा चौंक गए। लेकिन जब उन्होंने अपना नाम पोप लियो XIV चुना, तो यह साफ हो गया कि वे पोप लियो XIII के सामाजिक कार्यों को आगे बढ़ाना चाहते हैं।’
सन् 1878 से 1903 तक कैथोलिक चर्च का नेतृत्व करने वाले पोप लियो XIII ने आधुनिक कैथोलिक सामाजिक विचारधारा की नींव रखी थी। उनका 1891 का प्रसिद्ध दस्तावेज नया युग मजदूरों के अधिकारों और पूंजीवाद की सीमाओं पर केंद्रित था। उन्होंने न केवल बेरोकटोक पूंजीवाद की आलोचना की, बल्कि राज्य-केन्द्रित समाजवाद पर भी सवाल उठाए। इसी वजह से उनके विचारों को चर्च की खास आर्थिक शिक्षा के रूप में देखा जाता है।
इम्पराटोरी-ली के अनुसार, ‘इस नाम का चुनाव सामाजिक मुद्दों के प्रति गहरी प्रतिबद्धता का संकेत है। यह नया पोप बता रहे हैं कि सामाजिक न्याय उनके कार्यकाल की प्राथमिकता रहेगा। वे पोप फ्रांसिस के सेवा कार्यों को भी आगे बढ़ाएंगे।’
एक और ऐतिहासिक पोप, लियो I, को भी याद किया जा रहा है। इटली के कार्डिनल मौरिज़ियो पियाचेंज़ा ने बताया कि कैसे पोप लियो I ने 452 ईस्वी में अटिला द हुन को रोम पर आक्रमण करने से राजी करवा लिया था। इसके अलावा, पोप लियो XIII ने 1901 में पोम्पेई के ‘आवर लेडी ऑफ द रोजरी’ तीर्थस्थल को एक विशेष दर्जा भी दिया था।
शुरुआती दौर में पोप अपने असली नाम ही रखते थे। लेकिन छठी शताब्दी में रोमन मर्क्यूरियस, जिनका नाम एक पगान देवता पर रखा गया था, ने खुद को बदलकर जॉन II कर लिया। यहीं से नाम बदलने की परंपरा शुरू हुई। ग्यारहवीं शताब्दी में यह प्रथा मजबूत हो गई, जब जर्मन पोप अपने से पहले के पवित्र बिशपों के नाम रखते थे ताकि परंपरा और निरंतरता बनी रहे। इतिहासकार रोबर्टो रेगोलि बताते हैं कि बीसवीं सदी के मध्य से पोप अपने नामों के जरिए अपने कार्यकाल के उद्देश्यों का संकेत देने लगे।
अब तक सबसे ज्यादा 23 पोप ने ‘जॉन’ नाम चुना है। इसके बाद ‘बेनेडिक्ट’ और ‘ग्रेगरी’ का नंबर आता है, जिनके नाम पर 16-16 पोप बने हैं।
69 वर्षीय रॉबर्ट प्रीवोस्ट, जिन्होंने अपना नाम पोप लियो XIV चुना है, अमेरिकी कार्डिनल हैं। उनका जन्म शिकागो में हुआ है। दो साल पहले पोप फ्रांसिस ने उन्हें मार्क ओउलेट की जगह वेटिकन के बिशपों के लिए डिकास्टरी का प्रीफेक्ट चुनकर उन्हें अगली पीढ़ी के बिशपों को चुनने का काम सौंपा था। उन्होंने पेरू में आर्कबिशप बनने से पहले कई साल तक एक मिशनरी के तौर पर काम किया। प्रीवोस्ट को उन्हें एक सुधारक के रूप में देखा जाता है।





