काठमांडू: नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने शुक्रवार को ऐतिहासिक घोषणा करते हुए कहा कि उनकी पार्टी, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (NCP) आगामी आम चुनाव में भाग नहीं लेगी। यह कदम राजनीतिक हलकों में हड़कंप मचा रहा है और नेपाल की आगामी राजनीतिक तस्वीर को नया मोड़ दे सकता है।
ओली ने काठमांडू में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कहा कि पार्टी ने देश में बढ़ते राजनीतिक विवाद और आंतरिक मतभेदों के चलते यह निर्णय लिया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य राजनीतिक स्थिरता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की मजबूती है। उन्होंने कहा, “हम चाहते हैं कि चुनाव निष्पक्ष और शांतिपूर्ण हों। इसलिए हमने यह निर्णय लिया कि इस बार NCP चुनाव मैदान में नहीं उतरेगी।”
पार्टी के आंतरिक कारण
सूत्रों के अनुसार, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में पिछले कुछ महीनों से आंतरिक विवाद और नेतृत्व संघर्ष चल रहा था। ओली और उनके समर्थक वर्ग ने पार्टी के भीतर निर्णय लेने की प्रक्रिया और नीति निर्धारण को लेकर असहमति जताई थी। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के बीच तनाव इतना बढ़ गया कि चुनाव में उतरने का निर्णय विवादास्पद बन गया।
विशेषज्ञों का मानना है कि ओली का यह कदम बौद्धिक और रणनीतिक दोनों दृष्टि से सोच-समझकर लिया गया है। राजनीतिक विश्लेषक रमेश थापा के अनुसार, “ओली चाहते हैं कि उनकी पार्टी का नाम और प्रभाव बरकरार रहे, लेकिन चुनावी लड़ाई में उतरकर आंतरिक खींचतान और संभावित हार के जोखिम से बचा जा सके।”
चुनावी परिदृश्य पर असर
नेपाल में आम चुनाव की तारीखें लगभग निश्चित मानी जा रही हैं। ओली के फैसले के बाद पार्टी के पारंपरिक समर्थकों और मतदाताओं में चौंकापन और असमंजस देखा जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह कदम अन्य विपक्षी दलों और नए गठबंधनों के लिए अवसर पैदा कर सकता है।
ओली ने यह भी संकेत दिया कि पार्टी अगले विधानसभा और स्थानीय चुनावों में सक्रिय रह सकती है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर चुनावी मैदान में उतरने की योजना फिलहाल नहीं है। उन्होंने कहा, “राजनीतिक स्थिरता और लोकतंत्र की रक्षा हमारी प्राथमिकता है। चुनाव में भाग न लेना हमारी रणनीति का हिस्सा है।”
अंतरराष्ट्रीय और स्थानीय प्रतिक्रिया
नेपाल के राजनीतिक पर्यवेक्षक और अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक मानते हैं कि यह घोषणा देश की राजनीतिक स्थिरता के लिए सकारात्मक हो सकती है। दूसरी ओर, स्थानीय मीडिया और विपक्षी दल इसे राजनीतिक शांति और गठबंधन के लिए अवसर के रूप में देख रहे हैं।
राजनीतिक दलों और विश्लेषकों के अनुसार, ओली की पार्टी के चुनाव से बाहर रहने से कांग्रेस, माओवादी और अन्य क्षेत्रीय दलों के लिए सीटों की संभावनाएं बढ़ गई हैं। इससे आगामी चुनाव में राजनीतिक समीकरण में बदलाव की संभावना बढ़ गई है।
ओली के समर्थक नेताओं ने भी उनके फैसले का स्वागत किया और कहा कि यह निर्णय पार्टी की दीर्घकालीन रणनीति और संगठन की मजबूती के लिए सही कदम है।