दशकों से हिंसा और विस्थापन से जूझ रहे पूर्वी कांगो में स्थायी शांति की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया गया है। शनिवार को कांगो और रवांडा समर्थित विद्रोही गुटों ने संघर्ष विराम और अंतिम शांति समझौते के लिए सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए। यह समझौता 18 अगस्त को अंतिम रूप से हस्ताक्षरित किया जाएगा। इस प्रक्रिया में अमेरिका की मध्यस्थता की अहम भूमिका रही।
दशकों पुराने संघर्ष को रोकने की कोशिश
पूर्वी कांगो के खनिज समृद्ध क्षेत्रों में 100 से अधिक सशस्त्र गुट सक्रिय हैं, जिनमें सबसे प्रमुख एम23 विद्रोही संगठन है। इसे रवांडा का समर्थन प्राप्त है और यह समूह लंबे समय से गोमा और बुकावू जैसे प्रमुख शहरों में सक्रिय है।
इस संघर्ष के कारण अब तक 70 लाख से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र ने इसे विश्व के सबसे जटिल और गंभीर मानवीय संकटों में से एक बताया है।
शांति समझौते की प्रमुख शर्तें अभी स्पष्ट नहीं
हालांकि अभी यह साफ नहीं है कि अंतिम समझौते में दोनों पक्ष किन शर्तों पर सहमत होंगे।
• एम23 समूह की मांग है कि कांगो की जेलों में बंद उसके लड़ाकों को रिहा किया जाए, जिनमें से कई को मृत्युदंड भी दिया जा चुका है।
• वहीं कांगो सरकार चाहती है कि विद्रोही अपने कब्जे वाले क्षेत्रों से पूरी तरह पीछे हटें।
क्या रवांडा देगा समर्थन वापस?
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, एक प्रमुख चुनौती यह भी है कि क्या रवांडा विद्रोही गुटों को सैन्य और रणनीतिक समर्थन देना बंद करेगा? रिपोर्ट्स के अनुसार, रवांडा की सेना के हजारों सैनिक पूर्वी कांगो में मौजूद हैं।
जून में हुआ था कूटनीतिक समझौता
गौरतलब है कि जून में अमेरिका की मध्यस्थता से कांगो और रवांडा सरकारों के बीच प्राथमिक समझौता हुआ था। उस समय रवांडा के विदेश मंत्री ओलिवियर नदुहुंगिरेहे ने कहा था कि यदि कांगो, 1994 के नरसंहार से जुड़े तत्वों को निष्क्रिय करता है, तो रवांडा अपनी रक्षात्मक सैन्य कार्रवाई रोकने को तैयार है।
आसान नहीं एम23 का पीछे हटना
विश्लेषकों का मानना है कि एम23 के लिए कब्जे वाले शहरों से पीछे हटना आसान नहीं होगा। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि कांगो सरकार उन्हें कितनी रियायतें देती है, विशेष रूप से राजनीतिक मान्यता, पुनर्वास और माफी संबंधी प्रावधानों को लेकर।