पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा को लेकर एक बार फिर विवाद खड़ा हो गया है। ताजा मामला स्कूलों से जुड़ा है, जहां हिंदू छात्राओं पर धर्म परिवर्तन का दबाव डाले जाने के आरोप सामने आए हैं। इन आरोपों ने स्थानीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी चिंता को बढ़ा दिया है।
सूत्रों के अनुसार, कई स्कूलों में पढ़ने वाली हिंदू छात्राओं के परिजनों ने शिकायत की है कि शिक्षकों और प्रशासन की ओर से बच्चियों को इस्लाम अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। परिजनों का कहना है कि छात्राओं को धार्मिक गतिविधियों में जबरन शामिल किया जाता है और परीक्षा व आंतरिक मूल्यांकन में परेशानी का डर दिखाकर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया जाता है।
मामला सामने आते ही अल्पसंख्यक संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में हिंदू, सिख और ईसाई समुदायों के खिलाफ भेदभाव कोई नई बात नहीं है, लेकिन स्कूलों में इस तरह के दबाव का आरोप बेहद गंभीर है। संगठनों ने मांग की है कि सरकार तुरंत निष्पक्ष जांच कर जिम्मेदारों पर कठोर कार्रवाई करे, ताकि अल्पसंख्यक बच्चों का शिक्षा का अधिकार सुरक्षित रह सके।
विवाद बढ़ने के बाद स्थानीय प्रशासन ने कहा है कि शिकायतों की जांच के आदेश दे दिए गए हैं। शिक्षा विभाग का दावा है कि यदि किसी संस्थान में ऐसा पाया जाता है तो स्कूल प्रबंधन के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। हालांकि, कई परिवारों का कहना है कि डर और सामाजिक दबाव के कारण अधिकांश लोग शिकायत दर्ज कराने से भी बचते हैं।
इस पूरे घटनाक्रम ने पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदायों की स्थिति और शिक्षा संस्थानों में धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे को एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया है। मानवाधिकार विशेषज्ञों का मानना है कि यदि वक्त रहते ऐसे मामलों को रोका नहीं गया, तो इसका असर न सिर्फ अल्पसंख्यक समुदायों के भविष्य पर पड़ेगा, बल्कि पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी गंभीर सवाल खड़े होंगे।





