Monday, November 24, 2025

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न्यायसंगत जलवायु कार्रवाई के प्रति भारत की दोहराई प्रतिबद्धता — ब्राजील में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में कहा, वैश्विक व्यवस्था हो नियम-आधारित व समानता पर आधारित

ब्राजील में संयुक्त राष्ट्र की ओर से आयोजित अंतरराष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में भारत ने वैज्ञानिक और न्यायसंगत जलवायु कार्रवाई के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। भारत ने कहा कि वह ऐसी वैश्विक जलवायु व्यवस्था चाहता है जो नियम-आधारित हो, न्यायसंगत हो और सभी देशों की संप्रभुता का सम्मान करे

सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने किया। भारत ने यूएनएफसीसीसी कॉप-30 की अध्यक्षता के दौरान ब्राजील को समावेशी नेतृत्व के लिए समर्थन व्यक्त किया और जलवायु शिखर सम्मेलन में लिए गए कई निर्णयों का स्वागत किया। हालांकि, नई दिल्ली ने माना कि इस सम्मेलन में जलवायु नीति निर्माण के स्तर पर अपेक्षित प्रगति नहीं हो सकी

वित्तीय सहायता पर सहमति, लेकिन जीवाश्म ईंधन पर स्पष्ट रोडमैप नहीं

वार्ताओं का समापन चरम मौसम की मार झेल रहे देशों को वित्तीय सहायता बढ़ाने के वादे के साथ हुआ। लेकिन जीवाश्म ईंधनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की रूपरेखा शामिल नहीं की गई।

भारत ने ग्लोबल गोल ऑन एडाप्टेशन (GGA) के तहत हुई प्रगति का स्वागत करते हुए कहा कि यह निर्णय विकासशील देशों की अनुकूलन आवश्यकताओं को स्वीकार करने की दिशा में सकारात्मक संकेत है।

कॉप-31 की मेजबानी तुर्किये करेगा

लंबे गतिरोध के बाद फैसला हुआ कि कॉप-31 की मेजबानी 2026 में तुर्किये करेगा, जबकि वार्ता-प्रक्रिया का नेतृत्व ऑस्ट्रेलिया संभालेगा। दोनों देश सम्मेलन की मेजबानी को लेकर 2022 से दावेदार बने हुए थे।

न्यायसंगत परिवर्तन तंत्र को बताया मील का पत्थर

भारत ने कॉप-30 की प्रमुख उपलब्धि जस्ट ट्रांजिशन मेकैनिज्म’ (न्यायसंगत परिवर्तन तंत्र) की स्थापना को महत्वपूर्ण मील का पत्थर बताया। भारत ने कहा कि इससे वैश्विक व राष्ट्रीय स्तर पर जलवायु न्याय लागू करने में सहायता मिलेगी। साथ ही, भारत ने एकतरफा व्यापार-प्रतिबंधक जलवायु उपायों पर चर्चा के लिए मंच उपलब्ध कराने हेतु अध्यक्षता को धन्यवाद दिया।

ग्लोबल साउथ के लिए समर्थन की मांग

भारत ने दोहराया कि जलवायु परिवर्तन से निपटने की लागत उन देशों पर नहीं डाली जानी चाहिए, जिनकी जिम्मेदारी सबसे कम है। ग्लोबल साउथ के देश जलवायु प्रभावों से सर्वाधिक प्रभावित हैं और उन्हें पर्याप्त वैश्विक सहयोग और आर्थिक समर्थन की आवश्यकता है ताकि वे बढ़ते जलवायु जोखिमों से स्वयं को सुरक्षित रख सकें।

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